________________ योगबिंदु 165 कारणों में वह सामर्थ्य नहीं कि वह (उस बीज की मौलिक विविधता बिना) उस फल में विचित्रता ला सके। बिना योग्यता के उन कारणों का ही उपनिपात नहीं हो सकता, इसलिये निमित्तों को भी योग्यता की अपेक्षा रहती है। जिसमें जैसी योग्यता हो उसे वैसे ही निमित्त कारण मिल जाते हैं। अनुकूल अथवा प्रतिकूल निमित्तों की प्राप्ति भी योग्यता की विभिन्नता को सिद्ध करती है ग्रंथकार का तात्पर्य है कि जीवों की भव्यत्व योग्यता सहज स्वाभाविक आत्मसहभावी और नाना प्रकार की है अगर सभी की योग्यता को एक ही प्रकार की माने तो संसार में सभी प्राणियों में जो विचित्रता पायी जाती है; वह घटित नहीं हो सकती / अगर आप कहें कि मूलरूप से तो योग्यता एक ही प्रकार की है परन्तु निमित्त कारणों - द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव अथवा काल, स्वभाव, नियति, पूर्वकृत पुरुषार्थ की वजह से उसमें भिन्नता आती है, तो वे कहते हैं कि निमित्त कारणों की प्राप्ति अर्थात् अनुकूल या प्रतिकूल निमित्त कारण आत्मा की तथा प्रकार की योग्यता के अनुसार ही प्राप्त होते हैं। भव्यत्व योग्यता उत्तम हो तो परिस्थिति-सत्संग-सत्साधनों की प्राप्ति उत्तम, मध्यम हो तो मध्यम, निकृष्ट हो तो निकृष्ट होती है / इस प्रकार मूल से ही योग्यता नानारूपी // 277|| योग्यता चेह विज्ञेया बीजसिद्धयाद्यपेक्षया / आत्मनः सहजा चित्रा तथाभव्यत्वमित्यतः // 278 // अर्थ : बीजसिद्धि आदि की अपेक्षा से तथाभव्यत्व योग्यता आत्मा की सहज और नानारूपी है // 278 // विवेचन : योग्यता-आत्मा का मोक्षगमन करने का सहज स्वभाव / जैसे बीज की योग्यता निमित्त और सहकारी कारणों का सहयोग पाकर वृक्षरूप में परिणत होकर, फलरूप सिद्धि को प्राप्त करती है, अर्थात् बीज में जिस प्रकार की योग्यता होती है उसी प्रकार का वृक्ष बनता है एवं फल प्राप्ति होती है। इसी प्रकार आत्मा में मोक्षगमन की योग्यतारूपी बीजभूत भव्यत्व स्वभाव है उसकी अपेक्षा से जीव देवपूजा, गुरुभक्ति, धर्मोपदेश श्रवण की तीव्र अभिलाषा, संसार से मुक्त होने की तीव्र चाहत आदि प्रवृत्ति का अवलम्बन करने का आत्मा का सहज स्वभाव है परन्तु जैसा-जैसा कर्मों का क्षय वैसा-वैसा उसका विकास, इसलिये सभी जीवों में वह योग्यता तरतम भाव से विविध प्रकार की पायी जाती है / अतः वह योग्यता सहज और विचित्र है // 278|| वरबोधेरपि न्यायात् सिद्धि! हेतुभेदतः / फलभेदो यतो युक्तस्तथा व्यवहितादपि // 279 // अर्थ : उत्तम बोधि से सिद्धि न्याययुक्त है, हेतुभेद से नहीं, क्योंकि फलभेद तथाप्रकार की योग्यता से ही युक्ति युक्त सिद्ध होता है // 279 / /