________________ 162 योगबिंदु ___ अर्थ : परोपकार-रसिक, बुद्धिमान, मोक्षमार्ग पर चलने वाला, उदार-विशाल हृदयी तथा गुणानुरागी इत्यादि सर्व (गुण) दोनों के तुल्य है // 272 / / विवेचन : दूसरों की भलाई करने में ही जिसे परमशान्ति और परम आनन्द का अनुभव होता है। दूसरे के दुःखों को देखकर, उसे दूर किये बिना जिसको चैन नहीं पड़ता / दीन, दुःखी, अनाथ, संकटग्रस्त तथा दरिद्रनारायण की सेवा को जो परमात्मा की सेवा मानकर, तन, मन, धन से उसमें निमग्न हो जाता है / सेवाव्रत ही उसका जीवनव्रत बन जाता है। आज के युग में गुजरात के मूल सेवक श्री रविशंकर महाराज में यह गुण देखा गया है। बुद्धिमान-धीमान् सेवाधर्म के साथसाथ विवेक की भी जरूरत है, अन्ध भक्ति कभी अनर्थ का कारण भी बन सकती हैं, इसलिये कहा है कि वह धीमान् सारासार का यथार्थ विचार करके, कार्य करने वाला होता है / फिर बताया है कि वह सतत कल्याणपदगामी होता है / हमेशा मोक्षमार्ग की तरफ ले जाय, ऐसी शुभकल्याणकारी प्रवृत्ति करने वाला होता है / बड़ा उदार और विशाल हृदय होता है / मन के परिणाम कपट रहित होते हैं / वह गुणानुरागी होता है व्यक्ति विशेष की पूजा करने वाला नहीं / जहाँ भी गुण देखे; वहाँ अनुराग रखने वाला होता है। जैसा कि कहा है "गुणथी भरेला गुणीजन देखी / हैयु माझं नृत्य करे, ओ सन्तों ना चरण कमलमां मुझ जीवन, अर्ध्य रहे", ऐसी भावना और ऐसे विचारों का वह स्वामी होता है / बौद्धशास्त्र में बोधिसत्त्व के ऐसे अनेक गुण बताये हैं / ऐसे ही गुण जैनशास्त्रों में सम्यदृष्टि के बताये हैं, इसलिये बोधिसत्त्व और सम्यक्दृष्टि तुल्य ही है // 272 / / यत् सम्यग्दर्शनं बोधिस्तत्प्रधानो महोदयः / सत्त्वोऽस्तु बोधिसत्त्वस्तद्धन्तैषोऽन्वर्थतोऽपि हि // 273 // अर्थ : जो सम्यक्दर्शन है, वही बोधि है; वही जीवों के उदय में प्रधान हेतु है / कारण कि जीवों को सम्यक प्रवृत्ति कराने वाला वह सत्त्व-वीर्य जिसमें हो वह बोधि सत्त्व है, शब्दार्थ से भी यही अर्थ फलित होता है / __ अर्थात् सम्यक्दर्शन ही बोधि है जो जीवों के उदय में प्रधान हेतु है और सत्त्व-जीव अर्थात् बोधि को धारण करनेवाला जीव बोधिसत्त्व है शब्दार्थ से भी यही अर्थ फलित होता है // 273|| विवेचन : जैनों में जो सम्यक्दृष्टि है बौद्ध उसे बोधिसत्त्व कहते हैं / सम्यक्दृष्टि और बोधिसत्त्व दोनों बोधि प्रधान हैं / जैनों के 'लोगस्स' पाठ में "आरुग्गबोहि लाभं समाहिवरमुत्तमं दितुं" और 'उवसग्गहरं' पाठ में भी "ता देव दिल्झ बोहिं भवे भवे पासजिणचन्द" में बोधि को सम्यक्दर्शन कहा है (भक्त भगवान से भवोभव में सम्यक्दर्शन की प्राप्ति के लिये प्रार्थना याचना करता है)। बोधि सम्यक्दर्शन है जिस जीव में, वह बोधिसत्त्व कहा जाता है। इस प्रकार बोधिसत्त्व शब्द से भी सम्यक्दृष्टि अर्थ ही फलित होता है / जैनों में मान्यता है कि सम्यक्दर्शन जीवात्माओं का महान् उदय करने वाला है, परन्तु बोधिबीज की प्राप्ति दुष्कर और दुर्लभ होती है // 273 / /