________________ योगबिंदु 159 दूसरे अपूर्वकरण में प्रवृत्त होता है और वहीं से आगे बढ़ता हुआ अनिवृत्तिकरण तक पहुंच जाता है / संक्षेप में ये तीन करण भव्यों के लिये हैं अभव्यों को तो प्रथम ही कहा है। जब तक ग्रंथी उपस्थित है तब तक द्वितीय करण है, ग्रंथीभेद होने के पश्चात् उसे तृतीय करण प्राप्त होता है // 265 / / भिन्नग्रन्थेस्तृतीयं तु सम्यग्दृष्टेरतो हि न / पतितस्याप्यते बंधो ग्रन्थिमुल्लङ्घ्य देशितः // 266 // अर्थ : (अपूर्वकरण द्वारा) ग्रंथीभेद करने वाले को तृतीयकरण (अनिवृत्तिकरण) की प्राप्ति होती है। इसलिये (तीनों करणों की प्राप्ति होने से) सम्यक्दृष्टि से पतित होने वाले का बंध ग्रंथी को उल्लंघन करने वाला नहीं कहा अर्थात् वह कर्म की उत्कृष्टस्थिति को नहीं बांधता // 266 / / विवेचन : अपूर्वकरण द्वारा ग्रंथी का भेद करने वाले भिन्नग्रंथी आत्मा को तीसरे अनिवृत्तिकरण की प्राप्ति होती है / इस प्रकार तीन करणों को उपलब्ध सम्यक्दृष्टि आत्मा कदाचित मोहनीय कर्म की प्रबलता से सम्यक्त्व से पतित भी हो जाय, तो भी वह कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति को नहीं बांधता, अर्थात् वह कर्मों का कोमलबंध - हल्का कर्मबंध बांधता है। गाढ़तम महाबंध नहीं बांधता // 26 // एवं सामान्यतो ज्ञेयः परिणामोऽस्य शोभनः / मिथ्यादृष्टेरपि सतो महाबन्धविशेषतः // 267 // अर्थ : इस प्रकार सामान्यरूप से सम्यक्दृष्टि का परिणाम शुभ होता है और सम्यकत्व का त्याग करने पर वह महाबंधविशेष भी करता है // 267|| विवेचन : किसी भी पदार्थ का वर्णन सामान्य और विशेष दो दृष्टि से किया जाता है। ग्रंथकार यही कहना चाहते हैं कि सामान्यरूप से सम्यक्दृष्टि जीवों के परिणाम-अध्यवसायविचारधारा शुभ ही होती है। इसलिये वे कर्मों का महाबंध नहीं करते परन्तु विशेषदृष्टि से-अपवाददृष्टि से देखें तो सम्यक्दृष्टि जीव जब मिथ्यात्व मोहनीय कर्म की प्रबलता से सम्यक्त्व से पतित हो जाता है तब सम्यक्दृष्टि की अपेक्षा से महाबंध करता है / मिथ्यादृष्टि दो प्रकार के हैं : पहला मिथ्यादृष्टि वह है जिसने सम्यक् दृष्टि पाई ही नहीं और दूसरा मिथ्यादृष्टि वह है जिसने सम्यक्दृष्टि पाकर खो दी है। यद्यपि प्रथम प्रकार के मिथ्यादृष्टि की अपेक्षा से दूसरे मिथ्यादृष्टि का कर्मबंध कोमल है परन्तु स्थिर सम्यक्दृष्टियों की अपेक्षा से तो वह महाबंध ही विशेष रूप से कहा जाता है / अन्तर दोनों में इतना है कि प्रथम कोटि का मिथ्या दृष्टि महाबंध करता है परन्तु तीनकरण से युक्त सम्यक्दर्शन प्राप्त करके, पतित होने वाले का बंध पहले से न्यून अल्पबंध करने वाला होता है // 267 //