________________ 146 योगबिंदु जातिवन्त मयूर की भांति सद्योग का अधिकारी योगी भव्यात्मा भी अपने उच्च गुणों को कभी भी छोड़ नहीं सकता // 241 // __ ऐसे महापुरुष कही भी जाय, उनके सद्गुणों की सुवास (सुगंध) सर्वत्र फैल जाती है इसी भाव को स्पष्ट करते हुये ग्रंथकारने कहा है : एतस्य गर्भयोगेऽपि, मातृणां श्रूयते परः / औचित्यारम्भनिष्पत्तौ, जनश्लाघ्यो महोदयः // 242 // अर्थ : सद्योग के योग्य पुरुष के गर्भ में आने पर माता की उचित कार्यों में प्रवृत्ति होने से वह लोगों में प्रशंसा प्राप्त करती है // 242 // विवेचन : ऐसे सद्योग के अधिकारी - योगी, तीर्थंकर, गणधर, चक्रवर्ती आदि महापुरुष जब माता के गर्भ में आते हैं तब माता को बड़े उच्चकोटि के दोहले-विचार पैदा होते हैं / उन दोहलों को पूरा करने के लिये माता महान् उपकार के शुभकार्य करती है; धर्मानुष्ठान करवाती है; उत्तमक्रिया करने की भावना होती है; दान देती है; सभी का मन से, वचन से, काया से कल्याण चाहती है और करती है। जिससे लोग माता की बहुत प्रशंसा करते हैं / माता जगत में वन्दनीय, पूजनीय बनती है / माता-पिता, कुटुम्ब-कबीला, जाति और कौम की यशकीर्ति भी जगत में चारों और फैल जाती है। जिस कोटि का जीव माता के गर्भ में आता है, उसी के अनुसार माता का मानसिक कायाकल्प हो जाता है / महापुरुषों के गर्भ में आने पर माता की सारी मानसिक स्थिति मानसिक परिणामों की धारा खूब उच्च हो जाती है। यह सब उस उच्च-उदात्त महापुरुष की आत्मशक्ति का द्योतक है / जैसे कि टीकाकार ने भी बताया है कि सुमतिनाथ भगवान् की माता को भगवान् के गर्भ में आने पर अच्छी-सुन्दर मति पैदा हुई इसलिये भगवान् का नाम सुमतिकुमार रखा / श्री धर्मनाथ भगवान् के गर्भ में आने पर माता को धर्ममय विचार आये तो उनका नाम धर्मनाथ रखा / मुनिसुव्रतनाथ भगवान् के गर्भ में आने पर माता को मुनिओं जैसा व्रत पालने का मन हुआ तो उनका नाम मुनिसुव्रत रखा / भगवान् वर्धमान के गर्भ में आने पर प्रतिदिन कुल में सब प्रकार से वृद्धि हुई, इसलिये उनका नाम वर्धमान रखा इस / प्रकार महापुरुषों का जो उच्च जातीय स्वभाव है वे कहीं भी चले जायें, प्रकट हुये बिना नहीं रहता / उच्चयोगी अपने उदात्त स्वभाव को कभी नहीं छोड़ सकते // 242 / / जात्यकाञ्चनतुल्यास्तत्प्रतिपच्चन्द्रसन्निभाः / सदोजोरत्नतुल्याश्च, लोकाभ्युदयहेतवः // 243 // अर्थ : उत्तमजाति के स्वर्णतुल्य; शुक्ल प्रतिपदा के चन्द्र तुल्य; उत्तम तेज वाले रत्न तुल्य; वे (सद्योग वाली भव्यात्मायें) लोगों के अभ्युदय के हेतु हैं (कारण हैं करने वाले हैं) // 243 / /