________________ योगबिंदु 135 अर्थादावविधानेऽपि, तदभावः परं नृणाम् / धर्मेऽविधानतोऽनर्थः, क्रियोदाहरणात् परः // 223 // अर्थ : अर्थ और काम का विधान न करने पर मनुष्यों को केवल उसका (अर्थ और काम का) अभाव ही होगा लेकिन धर्म का विधान न करने से तो महान् अनर्थ होगा। यहाँ वैद्य की चिकित्सा का उदाहरण समझें // 223 // विवेचन : वीतराग परमात्मा ने अपने शास्त्रों में अर्थ और काम का उपदेश नहीं दिया क्योंकि अर्थ-अनर्थ का मूल है और काम मनुष्य को पाप की ओर, दुर्गति की ओर ले जाता है। इसलिये इस का विधान न करने से कोई हानि या नुकसान नहीं होने वाला / सम्भवतः अर्थ और कामविधि को न जानने से मनुष्य को धन और काम्यविषयों की प्राप्ति न होगी; लेकिन अगर मनुष्यों को धर्म का विधान न करे अथवा यदि मनुष्य को शास्त्रोक्त धर्म की प्राप्ति न हो तो संसार के दुःखों का अन्त कैसे आये? धर्म के बिना तो अनेकों अनर्थ पैदा होंगे? मनुष्य का मनुष्यत्व सर्वथा नष्ट हो जायगा। कहा भी है : पडिवज्जिउण किरियं तीए विरुद्ध निसेवइ जो उ / अपवत्तगा उ अहियं, सिग्धं च संपावइ विणासं // करने योग्य कार्यों का त्याग करके, उसके विरुद्ध जो आचरण करता है, वह शीघ्र ही नष्ट हो जाता है / वैद्य ने औषध के साथ जो अनुपान बताया हो, उसे छोड़कर, शरीर की स्थिति के विरुद्ध, रोगवर्धक खुराक का अनुपान रोग को बढ़ाता है और अन्त में मृत्यु की शरण में ले जाता है। इसी प्रकार मोक्ष के लिये करने योग्य क्रिया दर्शन, ज्ञान और चारित्र को छोड़कर, अर्थ और काम में आसक्त होकर; हिंसादि अठारह पाप स्थानकों का सेवन करके; अनेक दुःखों को भोगता हुआ विनष्ट हो जाता है / इसलिये अरिहन्त परमात्मा ने शास्त्रों में परम कल्याणकारी धर्म का ही विधान किया है। महर्षि वात्सायन ने काम का और कौटिल्य ने अर्थशास्त्र का उपदेश दिया है, परन्तु अर्थ और काम दुर्गति के हेतु होने से, अरिहन्त परमात्मा ने उसका उपदेश नहीं दिया // 223 // तस्मात् सदैव धर्मार्थी, शास्त्रयत्नः प्रशस्यते / लोके मोहान्धकारेऽस्मिन् शास्त्रालोकः प्रवर्तकः // 224 // अर्थ : इसीलिये धर्मी और शास्त्र में आदर रखने वाले की हमेशा प्रशंसा की जाती है क्योंकि मोहरूपी अन्धकार से युक्त इस लोक में शास्त्ररूप दीपक ही ज्ञानमय प्रकाश करता है // 224|| विवेचन : अगर वीतराग परमात्मा ने भव्यजीवों के उपकार के लिये धर्म का स्वरूप बताने वाले शास्त्रों का प्रतिपादन न किया होता तो जगत में बड़ा भारी अनर्थ हो जाता / काम और अर्थ के लिये अनेक प्रकार की जीवहिंसा, चोरी, झूठ बोलना, वस्तुओं का संग्रह करके अन्य को न देना,