________________ 128 योगबिंदु एतच्च योगहेतुत्वाद् योग इत्युचितं वचः / मुख्यायां पूर्वसेवायामवतारोऽस्य केवलम् // 209 // अर्थ : मोक्ष का हेतु होने से इसे (शुद्ध अनुष्ठान को) जो योग कहा, वह उचित ही है। मुख्य पूर्वसेवा में केवल इसका (शुद्ध अनुष्ठान का) ही समावेश है // 209 // विवेचन : ऐसा शुद्ध अनुष्ठान आत्मा को शुद्ध करता है और मोक्ष के साथ जोड़ता है, इसलिये ऐसे अनुष्ठान को योग नाम देना योग्य ही है, क्योंकि केवल भिन्नग्रंथी अपुनर्बन्धकों के शुद्ध अनुष्ठान को ही मुख्य पूर्वसेवा में अवकाश है / पुनर्बन्धकों द्वारा किये गये अनुष्ठानों से न आत्मशुद्धि होती है और न ही वह मोक्ष का हेतु होता है, इसलिये उसे योगत्व लागु नहीं होता। पूर्व में पूर्वसेवा के भी दो भेद किये हैं - मुख्य और औपचारिक पूर्वसेवा / तो यहाँ ग्रंथकर्ता यह कहना चाहते हैं कि मुख्य पूर्वसेवा में उपरोक्त शुद्ध अनुष्ठान को ही अवकाश है, मान्य किया है / अन्य पुनर्बन्धकों के अनुष्ठान को यहाँ अवकाश नहीं है, मान्य नहीं किया है, नहीं माना है / / 209 / / त्रिधा शुद्धमनुष्ठानं, सच्छास्त्रपरतन्त्रता / सम्यक्प्रत्ययवृत्तिश्च, तथाऽत्रैव प्रचक्षते // 210 // अर्थ : शुद्ध अनुष्ठान, सत्शास्त्र-परतन्त्रता और सम्यक् श्रद्धा ये तीन योग के अंग है, उसे ही यहाँ पर कहते हैं // 210 // विवेचन : अब योग का स्वरूप बताते हुये ग्रंथकर्ता उसके तीन प्रकार बताते हैं : शुद्ध अनुष्ठान करना, सत्शास्त्र की आज्ञा में रहना और सम्यक् श्रद्धा रखना / इसका विस्तृत वर्णन आगे करते हैं // 210 // विषयात्मानुबंधैस्तु, त्रिधा शुद्धमुदाहृतम् / अनुष्ठानं प्रधानत्वं, ज्ञेयमस्य यथोत्तरम् // 211 // अर्थ : विषय, स्वरूप और अनुबंध भेद से शुद्ध अनुष्ठान तीन प्रकार का है, उनकी उत्तरोत्तर प्रधानता है // 211 // विवेचन : संक्षेप में भवनिर्वेद-विषयशुद्ध अनुष्ठान है, आत्मबोध-स्वरूपशुद्ध अनुष्ठान है और आत्मस्वरूप का ज्ञान होने पर शुद्ध अध्यवसायों द्वारा किया गया तद्हेतु और अमृत अनुष्ठानअनुबंध अनुष्ठान है / इस प्रकार इन तीन अनुष्ठानों में प्रथम संसार के दुःखों से भवनिर्वेद पैदा होता है फिर उन दुःखों से छुटने के लिये जीव सद्गुरु की शरण में आता है और सद्गुरु के विश्वास से आत्मबोध को प्राप्त करता है / आत्मबोध हो जाने पर ही आत्मा के परिणाम शुद्ध होते हैं / शुद्ध परिणामों से तद्हेतु और अमृत अनुष्ठानों की उपलब्धि होती हैं, इस प्रकार उत्तरोत्तर प्रधानता