________________ 122 योगबिंदु एवमहप्रधानस्य, प्रायो मार्गानसारिणः / एतद्वियोगविषयोऽप्येष सम्यक् प्रवर्तते // 199 // अर्थ : इस प्रकार प्रकृति वियोग विषयक ऊहा प्रायः तर्क प्रधान और मार्गानुसारी को यथार्थ सिद्ध होती है // 199 // विवेचन : इस प्रकार कर्म सम्बंध का निश्चय हो जाने पर भव्यात्मा को सद्गुरु के योग से या कर्मों के क्षयोपशमभाव होने पर, विचार करने की बुद्धि-विवेकबुद्धि जागृत होती है। गुरु से श्रुत वचन पर ऊहापोह-तर्क वितर्क करते-करते स्व स्वरूप और संसार स्वरूप का निश्चय होता है। ऐसा ऊहापोह मार्गानुसारी भव्यात्मा को ही होता है। इस प्रकार मार्गानुसारीपना से अनादिकाल से आत्मा के साथ लगे कर्ममलरूप राग द्वेष की क्लेशमयी प्रवृत्ति का वियोग होता है। सांसिद्धिकमल का आत्मा से सर्वथा वियोग होने पर मोक्ष होता है और संयोग से संसार वैचित्र्य सब यथार्थ घटता है। यह वियोग जन्य मोक्ष की बात जिनमार्ग में कथित मोक्षस्वरूपानुसार है और तर्क - युक्ति-प्रयुक्ति से सिद्ध है / / 199 // एवंलक्षणयुक्तस्य प्रारम्भादेव चापरैः / योग उक्तोऽस्य विद्वद्भिर्गोपेन्द्रेण यथोदितम् // 200 // अर्थ : प्रारम्भ से ही गोपेन्द्र योगी ने ऐसे ऊहादि लक्षण वाले अपुनर्बन्धक आत्मा को योगयुक्त कहा है और अन्य विद्वानों ने भी ऐसा ही माना है // 200 // विवेचन : ग्रंथकर्ता ने बड़ा ही सुन्दर कहा है कि 'बाबावाक्यं प्रमाणं' करने वाले को योग की प्राप्ति नहीं होती। ऐसे व्यक्ति द्वारा की गई पूर्वसेवा को उन्होंने योग का अंग नहीं माना। लेकिन जिसके पास तर्क बुद्धि है; ऊहापोहात्मक बुद्धि है; वह ही वस्तु का यथार्थ बोध प्राप्त कर सकता है। किसी भी वस्तु के हार्द तक पहुंचने का मुख्य उपाय ऊहापोह है। ऊहापोह प्रधान और मार्गानुसारी व्यक्ति के द्वारा की गई पूर्वसेवा को प्रारम्भ से ही गोपेन्द्र योगी ने योग कहा है और अन्य जैनेतर विद्वानों ने भी ऐसा ही माना है अतः मार्गानुसारी, अपुनर्बन्धक, ऊहादिलक्षणयुक्त को योग की प्राप्ति होती है / / 200 / / "योजनाद् योग इत्युक्तो, मोक्षेण मुनिसत्तमैः / स निवृत्ताधिकारायां, प्रकृतौ लेशतौ ध्रुवः // 201 // अर्थ : (योग) मोक्ष के साथ जोड़ता है; इसलिये मुनिप्रवरों ने उसे योग कहा है। वह योग प्रकृति का अधिकार अंशत: निवृत्त होने पर निश्चय ही प्राप्त होता है / / 201 / / विवेचन : जो धर्मानुष्ठान मनुष्य को मोक्षमार्ग की ओर ले जाय, महापुरुषों ने उसी को ही योग कहा है। योग का यह लक्षण सर्वसम्मत है / वह योग आत्मा के ऊपर प्रकृति-कर्म का