________________ योगबिंदु अत एव च शस्त्राग्निव्यालदुर्ग्रहसन्निभः / श्रामण्यदुर्ग्रहोऽस्वन्तः शास्त्र उक्तो महात्मभिः // 144 // अर्थ : इसीलिये महात्माओं ने शास्त्र में श्रामण्यदुर्ग्रह को शस्त्र, अग्नि और व्यालदुर्ग्रह की भाति अशुभ परिणाम वाला कहा है // 144 // विवेचन : चूंकि मुक्ति का उपाय जो सम्यक् दर्शन, ज्ञान, चारित्र है। उसकी मलिनता अर्थात् उन गुणों का विनाश महान् अनर्थ को करने वाला है, इसीलिये महापुरुषों ने शास्त्र में श्रामण्यदुर्ग्रह को यानि असम्यकत्व अंगीकार को अशुभ परिणामी कहा है, अर्थात् उसका परिणाम-अन्त अकल्याणकारी होता है। जैसे गलत तरीके से पकड़े हुये शस्त्र, अग्नि और सांप द्वारा कारा जाना, जलाना और दंश रूप अशुभ परिणाम को लाते हैं उसी प्रकार श्रामण्य-चारित्र और उसका दुर्ग्रह - गलत तरीके से ग्रहण करना अर्थात् उसके परमार्थ - वास्तविक लक्ष्य को भूलकर, सांसारिक - पौद्गलिक सुखों और एषणाओं के लिये ग्रहण करना भी अशुभ है, महाअनर्थ को करने वाला है। हमारे आप्त पुरुषों ने श्रामण्यधर्म का सार उपशम बताया है। उपशम मोक्ष का कारण होता है। श्रामण्यधर्म का वास्तविक लक्ष्य जो मोक्षप्राप्ति है; वीतराग देवों की आज्ञा है; उसे न मानकर, उस पर श्रद्धा न रखकर केवल मेरी पूजा हो, महिमा हो, मेरी यशकीर्ति बढ़े ऐसी लोक एषणा का मलिन आशय रखकर, जो चारित्र की विराधना करता है, तप, जप, अनुष्ठान रूप क्रियाएँ करता है वे केवल कायक्लेश का कारण होती हैं। क्योंकि संसार भ्रमण का कारण मिथ्यात्व, कषाय, प्रमाद, अशुभ योग वैसे के वैसे ही ढंके पड़े रहते हैं, उनका सर्वथा विनाश नहीं होता बिना सम्यक्त्वप्राप्ति के सभी धर्मानुष्ठान व्यर्थ है कहा भी है : जह चेव उमोक्खफला, आणा आराहिआ जिणिंदाणं / संसारदुक्खफलया तह, चेव विराहिया नवरं // [पंचवस्तु-११९] जैसे जिनवर की आज्ञा के आराधक को, वह आराधना मोक्षफल का हेतु है; परन्तु जिनवर की आज्ञा के विराधकों को, वही आराधना संसार दुःख का कारण होती है / __ जैसे शस्त्र, अग्नि और सांप को गलत तरीके से पकड़ना अशुभ के लिये होता है वैसे ही श्रामण्य-चारित्र का दुर्ग्रह गलत उपयोग दुरूपयोग भी नरकादि अशुभ परिणाम को लाने वाला है। इसलिये श्रमणधर्म का अंगीकार समयग् दृष्टि पूर्वक करना चाहिये / लोक-एषणा के लिये तप, जप, आतापना आदि करना चारित्र का दुरूपयोग है, चारित्र की विराधना ही है। // 144 // कुछ लोग शंका करते हैं कि जब दुराग्रही श्रमण धर्म श्रामण्य (दुर्ग्रह) की आराधना से सुरलोक की प्राप्ति होती है फिर इसे दुर्गति का कारण क्यों कहा गया है ? इसका उत्तर देते है : ग्रैवेयकाप्तिरप्येवं नातः श्लाघ्या सुनीतितः / यथाऽन्यायार्जिता संपद् विपाकविरसत्वतः // 145 //