________________ योगबिंदु अर्थ : लोकाचार का पालन, सर्वत्र औचित्य पालन, कण्ठ में प्राण आ जाने पर भी गहित कार्य में प्रवृत्ति न करे // 130 // विवेचन : धर्म को किसी भी प्रकार की आंच न आये, इस प्रकार के लोक-व्यवहार का अनुसरण करना चाहिये / सर्वत्र-स्वपक्षीय और परपक्षीय मिश्रित व्यवहार में तटस्थ रहकर, धर्म के अविरुद्ध जो-जो जहाँ उचित हो ऐसे कार्य प्रसंगों में, विनय, विवेक, नम्रता और दान पूर्वक औचित्य का पालन करना / अर्थात् समयानुकूल उचित प्रवृत्ति सम्भालना और प्राण चाहे कण्ठ में भी आ जाय फिर भी निन्दनीय प्रवृत्ति कभी न करें / संघ में, समाज में निन्दा हो ऐसा कोई भी कार्य न करें। कुव्यसनों का त्याग करे // 130 // ____ इस प्रकार पूर्वोक्त पांच श्लोकों में सदाचार की व्याख्या करके अब पूर्वसेवा में तप को बताते हैं : तपोऽपि च यथाशक्ति, कर्तव्यं पापतापनम् / तच्च चान्द्रायणं कृच्छू, मृत्युनं पापसूदनम् // 131 // अर्थ : पाप को जलाने वाले तप को भी यथाशक्ति करना चाहिये / और वह तप-चान्द्रायण, कृच्छ्र, मृत्युघ्न और पापसूदन (चार प्रकार का) है // 131 // विवेचन : योग प्राप्ति की इच्छा रखने वालों को उपरोक्त अनुष्ठान के साथ यथाशक्ति तपश्चर्या भी अवश्य करनी चाहिये / क्योंकि तप सभी पापों को जला देता है, नष्ट कर देता है। स्मृति आदि ग्रंथों में तप चार प्रकार का बताया है चान्द्रायण, कृच्छ्र, मृत्युघ्न और पापसूदन आदि / महापुरुषों ने जहाँ-जहाँ भी तप का उपदेश दिया है वहाँ-वहाँ उसे यथाशक्ति कहा हैं / शक्ति से कम भी नहीं शक्ति से ज्यादा भी नहीं / अगर कोई शक्ति के अधिक तपश्चर्या कर ले तो लाभ की अपेक्षा नुकसान ही अधिक सम्भव है / क्योंकि वह तप अन्दर प्रविष्ट नहीं हो सकता, चित्त की समाधि नहीं रहती और वह केवल शरीर तक ही सीमित रहता है और कभी-कभी शरीर भी बिगड़ जाता है। इसलिये हमेशा तप अपनी शक्ति को माप कर करना चाहिये / अगर शक्ति है और अपनी शक्ति के सामर्थ्य अनुसार तप नहीं करते हैं तो शक्ति छिपाने का दोष लगता है उसे प्रमाद कहते हैं। इसलिये जैनधर्म के ज्ञाताओं ने यथाशक्ति शब्द कितना सुन्दर बढ़िया रखा है // 131 // एकैकं वर्धयेद् ग्रासम्, शुक्ले कृष्णे च हापयेत् / भुञ्जीत नामावास्यायामेष चान्द्रायण विधिः // 132 // अर्थ : शुक्लपक्ष में एक-एक कवल (ग्रास) बढ़ाये और कृष्णपक्ष में (एक-एक कवल) घटायें / अमावास्या के दिन (बिल्कुल न खायें) यह चान्द्रायण तप की विधि है // 132 //