________________ योगबिंदु लोकापवादभीरुत्वं, दीनाभ्युद्धरणादरः / कृतज्ञता सुदाक्षिण्यं, सदाचारः प्रकीर्तितः // 126 // अर्थ : लोकापवाद से डरना, दीनजनों के उद्धार का प्रयत्न करना, कृतज्ञता और दाक्षिण्य को सदाचार कहते हैं // 126 / / विवेचन : यद्यपि 'शुद्धं लोकविरुद्धं न करणीयं नाचरणीय' लोक विरुद्ध का त्याग करना। सज्जन लोग जीवन में ऐसा किसी भी प्रकार का व्यवहार नहीं करते, जिससे लोक में उनकी निन्दा हो, क्योंकि लोक-निन्दा को वह मृत्यु से भी बुरा समझते हैं / उनका व्यापार-धंधा, लेना-देना, बोलना-चालना, जीवन की समग्र क्रिया सतत् जागृति पूर्वक होती है। अतः लोकापवादभीरुत्व भी सदाचार है और धर्मयुक्त उसकी प्रवृत्ति होती है। दीन-दुःखी, अनाथ, लूले-लंगड़े, बहरे, अन्धे आदि, जिनकी सार सम्हाल लेने वाला कोई नहीं, उनको यथाशक्ति सहायता देना, उनको दुःखों से उबार लेना भी सदाचार है। कृतज्ञता-किये उपकार को याद रखना; विपत्ति के समय, संकट वेला में जिसने हमको मार्गदर्शन दिया हो; हमारी मदद की हो; हमारा रक्षण किया हो; भय प्रसंग उपस्थित होने पर संपूर्ण सहायता दी हो; वह हमारा उपकारी है, उस उपकारी के उपकार को कभी नहीं भूलना चाहिये। हमेशा उसके प्रति कृतज्ञ रहना और समय आने पर उसके उपकार का बदला चुकाना भी सदाचार है / सुदाक्षिण्य अर्थात् चातुर्य अभिमान, मत्सर, ईर्ष्या, द्वेष आदि का त्याग करके, विनयविवेक पूर्वक दूसरों की मदद करना / शिष्टता पूर्वक व्यवहार करना / व्यवहार कुशलता भी सदाचार है। ऐसा सदाचार योगमार्ग में प्रवेश दिलवाने के लिये समर्थ होता हैं ऐसा महापुरुषों ने कहा है॥१२६॥ सर्वत्र निन्दासंत्यागो, वर्णवादश्च साधुषु / आपद्यदैन्यमत्यन्तं, तद्वत् संपदि नम्रता // 127 // अर्थ : निन्दा का सर्वत्र त्याग; सत्पुरुषों की प्रशंसा; आपत्ति में अदैन्यवृत्ति और सम्पत्ति में अत्यन्त नम्रभाव (रखना सदाचार है) // 127 // योग मार्ग में प्रवेश पाने वालों को किसी की भी, कहीं भी निन्दा नहीं करनी चाहिये / जहाँ भी सत्पुरुषों में गुणों को देखे, प्रमोद भावना से उनका गुणकीर्तन करे / कहा भी है - "गुण थी भरेला गुणीजन देखी; हैयुं मारुं नृत्य करे; ए सन्तो ना चरण कमल मां मुज जीवन नुं अर्ध्य रहे" / मेरी भावना में भी सुन्दर कहा हैं :- "गुणीजन देख हृदय में मेरे प्रेम उमड़ आवे; बने जहां तक उनकी सेवा करके यह मन सुख पावे" | आपत्ति, संकट, समय, दुःख के समय दीनता न लावे और सम्पत्ति समय खूब नम्रता रखें; अभिमान, अहंकार, घमंड, गरूर न लायें / जैसा कहा है "होकर सुख में मग्न न फूले; दुःख में कभी न घबराये" ऐसी ऊँची भावना को अपने जीवन