________________ योगबिंदु अविशेषेण सर्वेषामधिमुक्तिवशेन वा / गृहिणां माननीया यत्सर्वे देवा महात्मनाम् // 117 // अर्थ : सामान्य रूप से सभी गृहस्थों और महात्माओं को सर्व देव माननीय हैं अथवा जिसकी जिस (देव) पर अतिशय श्रद्धा हो (उस की यथायोग्य पूजा करें)॥११७|| विवेचन : ग्रंथकार का तात्पर्य यह है कि सामान्य रूप से सामान्य जनों की बुद्धि, अज्ञान, मोह और विषयों में आसक्त होने के कारण पारमार्थिक देव, गुरु और धर्म का यथार्थ निश्चय नहीं कर पाती / इसलिये हरि, हर, राम, अल्लाह, बुद्ध, अरिहन्त या ब्रह्मा, लौकिक-अलौकिक सर्वदेव उन गृहस्थों के लिये माननीय, वन्दनीय, पूजनीय है क्योंकि जब तक पारमार्थिक बुद्धि प्राप्त न हो तब तक सामान्य रूप से सर्व देवों को मान्य रखें, सब को आदर की दृष्टि से देखें। महात्मा लोगों की दृष्टि गुणग्राहिणी होने से वे भी सभी देवों को मानते हैं, आदर की दृष्टि से देखते हैं / अथवा गृहस्थों को जिस देव पर विशेष श्रद्धा-प्रीति-विश्वास हो, उनका यथायोग्य पूजन करें / अथवा किसको देव माने ? इसी का उत्तर है :- ग्रंथकार का तात्पर्य है कि सामान्य जनों की बुद्धि अज्ञान, मोह और विषयों में आसक्त होने से पारमार्थिक देव, गुरु, धर्म का यथार्थ निश्चय जब तक नहीं कर सकती, तब तक सामान्यरूप से हरि, हर, ब्रह्मा, राम, अल्लाह, बुद्ध, अरिहन्त आदि लौकिक-अलौकिक सर्वदेवों को माने / अथवा गृहस्थों को जिस देव पर विशेष श्रद्धा, प्रीति, विश्वास हो उनका यथा योग्य पूजन करें / महात्माओं को भी सामान्यरूप से सर्वदेव माननीय है, क्योंकि उनकी दृष्टि बड़ी उदार और विशाल गुण ग्राहिणी होती है / सर्व-धर्म समन्वय, सर्वधर्म आदर की कितनी सुन्दर विशाल भावना है // 117 // सर्वान देवान नमस्यन्ति, नैकं देवं समाश्रिताः / जितेन्द्रिया जितक्रोधा, दुर्गाण्यतितरन्ति ते // 118 // अर्थ : एक ही देव को मानकर बैठे नहीं रहते और सभी देवों को जो नमस्कार करते हैं / इन्द्रियों को जीतने वाले और क्रोधादि को जीतने वाले ऐसे लोग सभी दुःखों को तर जाते हैं // 118 // विवेचन : एक देव से तात्पर्य यह है कि जिसकी बुद्धि एक ही देव में अटक जाती है, अवकद्ध हो जाती है, उसकी दृष्टि कूपमण्डूक जैसी संकुचित हो जाती है। वह व्यक्ति बाहर देखता नहीं; किसी को भी सुनता नहीं; सुनने को तैयार भी नहीं होता, तो वह अनुभव विहीन रह जाता है और यथार्थ तत्त्व के हार्द तक पहुँचने में असमर्थ हो जाता है / इसलिये सत्य-असत्य का जो