________________ योगबिंदु तदासनाद्यभोगश्च तीर्थे तद्वित्तयोजनम् / तद्विम्बन्याससंस्कार ऊर्ध्वदेहक्रिया परा // 115 // अर्थ : उनके (गुरुजनों के) आसनादि का अपरिभोग, तीर्थ में उनके द्रव्य का योग्य व्यय करना, उनकी प्रतिमा स्थापन करवाना और प्रतिष्ठा करवाना तथा आदर पूर्वक उर्ध्वदैहिक-देहोत्सर्ग पश्चात् क्रिया करवाना // 115 / / विवेचन : मृत्यु के पश्चात उन गुरुजनों की पूजा कैसे करनी, यह बात ग्रंथकर्ता ने इस श्लोक में बताई है। कदाचित गुरुवर्ग माता-पिता आदि गुरुजन की मृत्यु हो जाय, तो उनके आसन, पात्र, वस्त्रादि का स्वयं उपभोग न करे तथा उनकी जो भी स्थावर-जंगम संपत्ति हो, उसका उपयोग तीर्थ में करें / अर्थात् देव मन्दिर, धर्मशाला, उपाश्रय आदि धर्मस्थानों में, जहा योग्य हो, उनकी इच्छानुसार वहाँ उसका सदुपयोग करे / परन्तु अगर उन लोगों की इच्छानुसार उनके द्रव्य का सद्व्यय न करके स्वयं ही ग्रहण करे तो उसे गुरुघात का महापाप लगता है। उनकी प्रतिमा-मूर्ति बनवाना और उसकी प्रतिष्ठादि संस्कार करवाना / कुछ लोगों के मत में उन गुरुजनों द्वारा बनवाये हुये देवचैत्यों में मन्दिरों में पूजा सेवा करवाना, ऐसा अर्थ भी करते हैं / उनकी देहोत्सर्ग क्रिया भी महामहोत्सव पूर्वक आदरपूर्वक करवानी चाहिये / तात्पर्य यह है कि मृत्यु के पश्चात् गुरुजनों की कोई भी चीज वस्तु स्वयं अपने काम में न लेकर योग्य स्थान या पात्र में उसका सदुपयोग करें / यह भी गुरुपूजन में ही समाहित हो जाता है // 116 // पुष्पैश्च बलिना चैव, वस्त्रैः स्तोत्रैश्च शोभनैः / देवानां पूजनं ज्ञेयं, शौचश्रद्धासमन्वितम् // 116 // अर्थ : शौच और श्रद्धा से युक्त पुष्प, नैवेद्य, वस्त्र और सुन्दर स्तोत्रों से देवपूजा होती है // 116|| विवेचन : पूर्वसेवा में गुरुपूजा विधि बताकर अब देवपूजा कैसे करनी यह बताते हैं / शौच - शरीर की, वस्त्र की, व्यवहार की शुद्धि करके श्रद्धाभक्ति से युक्त बहुमान पूर्वक जाई, जूही, गुलाब आदि अनेकविध पुष्पों से देव की पूजा करना जल - पक्वान्न, फलादि नैवेद्य प्रभु के आगे रखना; अंगरखे के लिये वस्त्र रखना; और सुन्दर-भाववाही गुणकीर्तनरूप स्तोत्रों से प्रभु की स्तुति करना, जिससे प्रभु जैसे गुण हमारे अन्दर भी प्रकट हो / इस प्रकार यह देवपूजा है / द्रव्यपूजा भाव का निमित्त कारण है / इसलिये मनुष्य की प्राथमिक भूमिका रूप द्रव्यपूजा का विधान प्रथम किया है जो आवश्यक है // 116 // अब देव किस को माने वह अगले श्लोक में बताते हैं -