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सप्तमोऽध्यायः
७३ वर्षे इस लोक में ठहर कर फिर परलोक को चला जायगा। एक वर्ष में मर जायगा ॥४॥
स्वल्पज्योतिर्विकल्पस्थो दुश्छायो दुर्मनाः सदा। रतिं न लभते क्वापि स वर्षान्नाधिकं वसेत् ॥ ५ ॥ स्वल्प ज्योति, आँखों की ज्योति कम हो अथवा शारीरिक कान्ति कम हो तथा किसी वस्तु या कार्य का निश्चय न हो; किन्तु प्रत्येक वस्तु या कार्य का विकल्प करता रहे, दुश्छाय जिसकी छाया अयुक्त खराब हो और सदा उदासमन रहता हो तथा कहीं पर भी शान्ति को न प्राप्त हो, सदा उद्विग्न सा बना रहे, वह एक वर्ष से अधिक नहीं जियेगा ॥ ५ ॥
यस्य स्नातस्य देहस्थं शुष्यते सकलं जलम् । हृदिस्थं नैव शुष्येत वर्षमात्रं स जीवति ॥ ६॥ जिसके स्नान करने पर समस्त देह का जल सूख जाय; परन्तु हृदय पर स्थित अर्थात् छाती के अधोभाग का जल न सूखे वह केवल एक वर्ष और जियेगा॥६॥.
स्वस्थस्य यस्य गात्रस्थं चन्दनं परिशुष्यते । ललाटस्थं न शुष्येत स वर्षान्नाधिकं वसेत् ॥ ७॥ जिस स्वस्थ पुरुष के शरीर में लगा हुआ चन्दन सूख जाय ; परन्तु ललाट-माथे पर लगा हुआ चन्दन न सूखे वह एक वर्ष से अधिक नहीं जियेगा॥७॥
यस्य स्नातानुलिप्तस्य प्रथमं हृद् विशष्यते । देहं कालेन पश्चात् तु स वर्ष नैव तिष्ठति ॥ ८॥ स्नातानुलिप्त-स्नान किये हुये तथा प्रत्येक अंग में चन्दन लगाये हुये जिस स्वस्थ पुरुष का प्रथम हृदय शुष्क हो जाय और देह का