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रोगिमृत्युविज्ञाने कुछ काल पश्चात् सूखे वह वर्ष भर नहीं जियेगा, वह वर्ष से प्रथम ही मर जायगा ॥८॥
स्मृतिर्घ द्धिर्बलं शीलं नष्टं यस्यास्त्यहेतुकम् । षण्मासादधिकं नैवं स स्थास्यति कथंचन ॥९॥ स्मृति-वस्तु का स्मरण, बुद्धि, बल, शील, अच्छा चरित्र अथवा स्वभाव जिसका बिना कारण के ही नष्ट हो जाँय वह छ महीने से अधिक नहीं जियेगा । अर्थात् छ महीने के मध्य में ही मर जायगा। ह॥
ललाटे जायते यस्य धमनीजालमद्भुतम् । पूर्व त्वदृश्यमानं स षड्मासान्नाधिकं वसेत् ॥ १० ॥ जिसके ललाट मस्तक पर नवीन (जन्म के समय का न हो) अद्भुत परम सुन्दर नाड़ियों का जाल देख पड़े और वह नाड़ियों का जोल पहले कभी नहीं देखा गया हो, अर्थात् जन्म का न हो वह छ महीना मात्र ही जियेगा ॥ १० ॥
द्वितीयाचन्द्रतुल्याभिलेखाभिश्चाप्यनुत्तमम् ।
यस्य भालं विभाव्येत षण्मासान्तं तमादिशेत् ॥ ११ ॥ द्वितीया चन्द्र के सदृश जिसके मस्तक पर रेखायें अथवा उभरी हुई नाड़ियाँ अत्युत्तम परम सुन्दर दीख पडें, उन रेखाओं से मस्तक सुशोभित मालूम दे वह छ महीना से अधिक नहीं जियेगा ॥ ११ ॥
संमोहो देहकम्पश्च गतिर्वचनमेव च । विक्षिप्तस्येव यस्य स्युः समासान्नाधिकं वसेत् ॥ १२ ॥
संमोह-अयुक्त वस्तु में नितान्त प्रेम, देह कम्प, गति-गमन चलना फिरना और बोलना जिसके विक्षिप्त (पागल) के समान हो जायँ वह एक महीना से अधिक नहीं ठहरेगा ॥१२॥