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तृतीयोऽध्यायः
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भयंकर गुफा के अन्धकार में जो रोगी स्वप्न में अपने को जाते हुये देखता है वह अवश्य जल्दी मरेगा ।। ३५ ।।
नग्नोऽत्युच्चैर्हसन् स्वप्ने रक्तस्रग् क्रव्यमुग्दिशि । कवियुक्तोऽटवीं गच्छेद्यः स लोकान्तरं व्रजेत् ।। ३६ ।। जो नग्न और अत्यधिक हँसता हुआ तथा लाल फूलों की माला पहिने हुये और बन्दर को साथ लिये हुये अर्थात् बन्दर नचाने वाला मदारी बना हुआ, दक्षिण दिशा के वन को स्वप्न में जाय, वह मर कर अन्य लोक में उत्पन्न होगा ।। ३६ ।।
काषायवसनान् क्रुद्धान् नग्नान् यो दण्डधारिणः । कृष्णानरुणनेत्रांश्च स्वप्ने पश्येत्स नंक्ष्यति ॥ ३७ ॥
जो मनुष्य स्वप्न में कषाय वस्त्र अर्थात् गेरुआ वस्त्र धारण किये हुये और कुछ गुस्से से भरे हुओं को देखता है, अथवा नग्न दण्डधारी संन्यासियों को देखता है, अथवा लाल आँख जिनकी हों ऐसे कृष्णवर्ण के अर्थात् काले २ मनुष्यों को देखता है, वह रोगी अथवा स्वस्थ किसी रोग को प्राप्त होकर मर जायगा ।। ३७ ॥
पापा
दीर्घकेशनखस्तनी |
आचाररहिता नीरागमान्यवसना कृष्णा स्वप्ने गताऽशुभा ॥ ३८ ॥
जो मनुष्य स्वप्न में आचार रहित दुराचारिणी अथवा हिंसादि पापों में अनुरक्त तथा दीर्घ केश - नख और दीर्घ स्तनवती तथा नीराग - मलिन कुम्हलाई माला युक्त तथा मलिन खराब मैले वस्त्रों को पहिने हुये, एवं काली कलूटी अभद्र स्त्री को स्वप्न में देखे तो अवश्य ही किसी प्रकार का अशुभ होगा ।। ३८ ।।
ईदृशा शुभाः स्वप्नाः रोगिणं घ्नन्ति निश्चयात् । सुस्थं जीवनसंदेहे, दुःखे द्राक्प्रापयन्ति वा ॥ ३९ ॥