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रोगिमृत्युविज्ञाने ___ इस प्रकार के अशुभ स्वप्नों को रोगी देखेगा तो अवश्य ही मरेगा और यदि सुस्थ नीरोग मनुष्य देखेगा तो उसके जीवन में संदेह है अथवा उसे जल्दी ही कोई घोर कष्ट प्राप्त होगा ॥ ३६॥
वर्णप्रमाणसंस्थानैराकृत्या प्रभयाऽथवा । छाया विवर्तते स्वप्ने यस्यासौ न चिरं वसेत् ।। ४० ॥ जिस पुरुष की छाया स्वप्न में वर्ण से अर्थात् छाया प्रतिबिम्ब कुछ नीलिमा युक्त श्वेत होता है, परन्तु उसे स्वप्न में अपनी छाया लाल पीली दीखे, तथा प्रमाण से अत्यधिक लम्बी अथवा संभाव्यमान योग्यता से अधिक छोटी देखे, अथवा संस्थान ठहरी हुई नहीं किन्तु हिलती झूलती देखे, अथवा आकृति से भिन्न जिस छाया का आकार हो अर्थात् स्वरूपानुरूप आकार न हो, किन्तु कोई बड़ा और कोई छोटा अथवा प्रभा कान्ति से अर्थात् छाया में एक प्रकार की चमक शोभा हो, इस प्रकार स्वप्न में जिसकी छाया विपरिवर्तित बदली हुई देख पड़ती है, वह अधिक काल तक नहीं जीता है, तात्पर्य यह कि स्वप्न देखने वाला जो गनुष्य अपनी छाया को उक्त प्रकार की देखता है, वह अधिक समय तक जीवित नहीं रहता, चाहे बीमारी हो, अथवा स्वस्थ हो, दोनों के लिये यही फल है ॥ ४० ॥
यस्य स्वप्ने प्रतिच्छाया प्रभावणेप्रमाणतः।
वैपरीत्येन संजाता स वर्षान्नाधिकं वसेत् ॥ ४१ ।। जिसकी प्रतिच्छाया परछाई प्रभा, वर्ण और प्रमाण से विपरीत हो जाय वह वर्ष से अधिक नहीं जियेगा, पूर्वोक्त वचन और इसमें यह भेद है, पूर्वोक्त श्लोक में अङ्ग प्रत्यङ्गों के वैपरीत्य होने पर फलादेश है, और इस श्लोक में समस्त छाया के वैपरीत्य होने का फलकथन है ॥ ४१ ॥ इमान्मयोक्तानशुभांस्तु रोगीस्वप्नान्विलोक्याशु मृति प्रयाति । सुस्थोऽपि रोगानथवाऽतिदुःखं यातीदृशं श्रीचरको ह्यबादीत् ।४२॥