________________
३६
रोगिमृत्युविज्ञाने जो स्वप्न में सुवर्ण को पाता है, अथवा बहुत से मनुष्यों के साथ झगड़ा, लड़ाई करता है, अथवा स्वप्न में ख श होता है वह मृत्यु सदृश दुःख को प्राप्त होता है ॥ ३१ ॥
कुपितैश्चापि पित्राद्यैर्भसितः पांशुचर्मणोः । . प्रपातानुगतः स्वप्ने यः स नाशमवाप्नुयात् ॥ ३२ ॥ जो मनुष्य स्वप्न में कुपित पितरों से धमकाया जाय, डाँटा जाय अथवा धूलि या चर्म-चाम में अथवा प्रपात में जहाँ झरना या नदी की धार गिरती है उसमें गिराया जाय, वह नाश (मृत्यु) को प्राप्त होगा ॥ ३२ ॥
सूर्याचन्द्रमसोदन्तदीपनक्षत्रचक्षुषाम् । पतनं वा विनाशं वा स्वप्ने दृष्ट्वा न जीवति ॥ ३३॥
जो मनुष्य स्वप्न में सूर्य, चन्द्रमा, दाँत, दीप, नक्षत्र, आँख किसी , एक या अनेक के पतन या विनाश को देखता है, वह नहीं जीता है, जल्दी ही मर जाता है ।। ३३ ॥
उपानद्-युगनाशं वा भेदनं पर्वतस्य वा। स्वप्ने पश्येच्च यो रोगी स नाशमुपयास्यति ॥ ३४ ॥
जो रोगी स्वप्न में जूतों के जोड़े को अथवा एक जूते के खो जाने को देखता है, अथवा पर्वत के तोड़ने फोड़ने भेदने को देखता है वह अवश्य जल्दी मरेगा ॥ ३४ ॥
रक्तपुष्पाटवीं भूमि पापकर्मालयं चिताम् । घोरं गुहान्धकारं यः स्वप्ने याति स नंक्ष्यति ॥ ३५॥
जिस भूमि के रास्ता में अत्यधिक बहुत से लाल फूल फूले हों, • ऐसी भूमि को अवथा पापालय जहाँ पशु-हिंसा होती हो, या अन्य प्रकार का दुराचार होता हो, अथवा चिता को अथवा घोर अत्यन्त