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शिक्षण प्रक्रिया में सर्वांगपूर्ण परिवर्तन की आवश्यकता || ६१ वहाँ जाकर अथवा अपने निजी आयोजन करते हुए उन दोनों पक्षों की कमी को पूरा करना चाहिए।
सामूहिक रूप से समाज सेवा के अभ्यास इस निमित्त आवश्यक हैं। छात्रों को उनके स्तर के अनुरूप संगठित किया जाए। खेलनेकूदने का अवसर दिया जाए, ताकि उनकी व्यवहार कुशलता, स्फूर्ति, तत्परता, जागरूकता एवं सहकारिता का, सतर्कता का अनुपात बढ़े। खेलों में हार-जीत के आधार पर निराश उत्तेजित होने का अवसर नहीं आने देना चाहिए वरन् खिलाड़ी भावना का हँसते-हँसाते विनोद करने का माद्दा बढ़ाना चाहिए। आत्म रक्षा के लिए, साहसिकता बढ़ाने के लिए. लाठी चलाने जैसे अभ्यास भी उपयोग में लाए जाने चाहिए।
व्यायामशाला के साथ स्वास्थ्य रक्षा एवं आपत्तिकालीन व्यवस्था की जानकारी भी जुड़ी रहनी चाहिए। इस दृष्टि से स्काउटिंग में फर्स्ट-एड होम नर्सिंग, घरेलू चिकित्सा जैसे विषय जुड़े रहते हैं, उन्हें ऐच्छिक नहीं रहने दिया जाना चाहिए। अनिवार्य न होते हुए भी समझा-बुझाकर अधिकांश छात्रों को उसमें भाग लेते रहने के लिए प्रोत्साहित करते रहना चाहिए। स्वच्छता अपने आप में एक समग्र विषय है। उसका हर पक्ष स्वास्थ्य केंद्रों में सिखाया जाना चाहिए। व्यायामशालाओं को मात्र पहलवानी का विषय न माना जाए, वरन् उन्हें स्वास्थ्य संरक्षण, सक्रियता संवर्धन के रूप में शिक्षा का एक अविच्छिन्न विषय मानकर चलना चाहिए।
गैर-सरकारी स्तर पर स्कूलों में गृह-उद्योग नहीं सिखाए जा सकते। स्थान की कमी, शिक्षकों और साधनों का अभाव कैसे पूरा हो ? कच्चा माल कहाँ से जुटाया जाए ? बनी हुई वस्तुएँ कहाँ बेची जाए ? इन प्रश्नों का हल न मिलने पर वह प्रयोग क्रमबद्ध रूप में नहीं चल सकता। पर दो उद्योग ऐसे हैं जिन्हें शिक्षक सामान्य जानकारी जुटाकर अपने बलबूते छात्रों की सहायता से चला सकते हैं। इनमें से एक है घरेलू शाक वाटिका। विभिन्न मौसमों में बोए-उगाए जाने वाले शाकों का पता लगाकर, उन्हें टोकरियों में गमलों में भी बोया-उगाया जा सकता है। दूसरा है टूट-फूट की मरम्मत बर्तन,