________________
|२०|शिक्षण प्रक्रिया में सर्वांगपूर्ण परिवर्तन की आवश्यकता
और उतने भर को वर्तमान शिक्षाक्रम में समाविष्ट कर लिया जाए। परिस्थितियाँ बदल जाने से उसी पद्धति को तो ज्यों का त्यों नहीं लाया जा सकता पर वह सिद्धांत तो शाश्वत है। शिक्षा के साथ प्रतिभा निखार और सुसंस्कारिता संवर्धन का क्रम तो जोड़ा जा सकता है। इसे तो अध्यापक वर्ग द्वारा, अपने ही बलबूते प्रारंभ किया और बहुत हद तक सफल बनाया जा सकता है। तीसरा पक्ष स्वावलंबन भी शिक्षा के साथ सुसंबद्ध होना चाहिए, पर इसके लिए शिक्षातंत्र की मनःस्थिति और परिस्थिति ही कुछ कर सकेगी। जन स्तर पर भी वैसा प्रबंध बन पड़ना संभव है।
आज के अध्यापक को अपनी गरिमा और जिम्मेदारी अधिक गंभीरता से समझनी चाहिए। शिक्षा के साथ सुसंस्कारिता जोड़ने के लिए प्राणपण से प्रयत्न करना चाहिए अन्यथा शिक्षा की उपेक्षा और शिक्षकों की अवज्ञा का जो माहौल चल पड़ा है, वह बढ़ता ही जाएगा। अरुचिपूर्वक किसी तरह पाठ्यक्रम पूरा करा देने पर तो शिक्षक अपनी उपयोगिता और महत्ता में से एक भी बनाए न रह सकेंगे। इसलिए विद्यार्थियों की उन्नति और अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा बनाए रखने की दोनों दृष्टियों से शिक्षकवर्ग को यह नया क्रम अपनाना ही होगा।