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________________ यद्यपि कृष्ण भगवान कहते हैं कि जो उनकी भक्ति में लगे हैं वे सरलता से उनके पास पहुँच सकते हैं परन्तु योगी जो अन्य योगविधियों का अभ्यास करते हैं उन्हे सदैव ही असफलता का भय रहता है। उनको शरीर छोडने के सही समय का निर्देशन भगवान ने भगवदगीता मे दिया हैः यतकाले त्वनावृत्तिमावृत्तिं चैव योगिनः। प्रयाता यान्ति तं कालं वक्ष्यामि भरतर्षभ।। .....८:२३ "ओ भरत के वंशजो मे श्रेष्ठ,अब मै तुम्हे उन विभिन्न कालों का वर्णन बताऊँगा जिन समयों में इस संसार से मृत्यु होने पर कोई वापिस आता है या नहीं आता है।'' यहाँ कृष्ण भगवान बताते हैं कि यदि कोई विशेष समय में यह शरीर छोडने योग्य हो जाये तो वह मुक्ति पा लेगा। और वह फिर इस संसार में वापिस नहीं आयेगा। इसके अतिरिक्त वे यह भी बतलाते हैं कि यदि कोई दसरे समय में मरे तो वह फिर वापिस आयेगा। यहाँ अवसर की बात है परन्तु भक्त जो सदैव कृष्ण भावना में हैं, उनके लिए अवसर का कोई प्रश्न नहीं है, उनके लिए कृष्ण लोक में प्रवेश करना भगवान की भक्ति के कारण निश्चय है। का अति अग्निोतिरहःशक्लः षण्मासा उत्तरायणम्। तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्मविदो जनाः।।भ.गी.८:२४ . "जो परम ब्रह्मन् को जानते हैं वे अग्नि देवता के प्रभाव में प्रकाश में, शुभ अवसर में, शुक्ल पक्ष में या उन छः महीनों में जब सूर्य उत्तर में रहता है, मरते हैं।"
SR No.032172
Book TitleJanma Aur Mrutyu Se Pare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA C Bhaktivedant
PublisherBhaktivedant Book Trust
Publication Year1977
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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