SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूर्य छ: महीने शून्य अक्षांश के उत्तर में रहता है और छः महीने दक्षिण में रहता है। श्रीमद्भागवत में समाचार है कि जैसे सभी ग्रह चक्कर लगाते रहते हैं वैसे ही सूर्य भी चक्कर लगाता है। यदि कोई उस समय मरता है जब कि सूर्य उत्तरायण में होता है तो वह मुक्ति पाता है। धूमो रात्रिस्तथा कृष्णः षण्मासा दक्षिणायनम। शिवायनम। तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते।। शुक्ल कृष्णे गती येते जगतः शाश्वते मते। एकया यात्यनावृत्तिमन्यया वर्तते पुनः।। (भ.गी. ८:२५:२६) - "अष्टाङग योगी जो इस संसार से धुंए में, रात्रि में, कृष्ण पक्ष में,या उन छः महीने जब सूर्य दक्षिण में होता है मरते हैं वे चन्द्र लोक तक जाते हैं वे फिर वापिस आते हैं। वेदों के अनुसार इस संसार में मरने की दो विधियाँ है- एक प्रकाश में और दूसरा अन्धकार मे। जो प्रकाश में मरते वे वापिस नहीं आते हैं और जो आन्धकार में मरते है वे वापिस आते हैं।" यह सब अवसर की बात है। हम नहीं जानते हैं कि हम कब मरने वाले हैं। हम दूर्घटना से कभी भी मर सकते हैं। परन्तु जो भक्तियोगी है जो कृष्ण भक्ति में स्थिर है उनके लिए अवसर का कोई प्रश्न नहीं है। उनके लिए सदैव निश्चय है-- नैते सृती पार्थ जानन्योगी मुह्यति कश्चन्। तस्मात्सर्वेषु कालेषु योगयुक्तो भवार्जुन।। .. (भ.गी.८:२७) ... "हे अर्जुन, भक्त जो इन दोनों भागों को जानते हैं वे कभी भी धोखे में नहीं रहते हैं। इसलिए वे सदैव भक्ति में स्थिर रहते हैं।"
SR No.032172
Book TitleJanma Aur Mrutyu Se Pare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA C Bhaktivedant
PublisherBhaktivedant Book Trust
Publication Year1977
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy