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________________ ४४ वे इस संसार में भेज दिये जाते हैं जो कि कारागार की भाँति है। हर . शहर मे कारागार होता है और कारागार शहर का बहुत ही छोटा भाग होता है। इस प्रकार यह संसार भी बाँधी हुई आत्माओं के लिए कारागार है। यह वैकुण्ठ का बहुत छोटा भाग है और यह वैकुण्ठ से बाहर नहीं है जैसे कारागार शहर से बाहर नहीं होता है। . - अलौकिक जगत के सभी निवासी मुक्त जीव हैं। श्रीमदभागवतम् से हमें ज्ञात होता है कि उनका शरीर बिल्कुल भगवान के जैसा है। इनमें से कछ लोकों मे भगवान के दो हाथ हैं और अन्य मे चार हाथ हैं। इन लोकों के निवासी भगवान की तरह दो या चार हाथों वाले हैं और यह कहा जाता है कि उनमें और भगवान में कोई भिन्नता नहीं देख सकता। वैकुण्ठ में पाँच प्रकार की मुक्तियाँ होती हैं। सायुज्य मुक्ति एक प्रकार की मुक्ति है जिसमें कोई भगवान के अव्यक्त रूप ब्रह्म में मिल जाता है। दसरी तरह की मक्ति सारूप्य मक्ति है जिसमें किसी को भगवान जैसा ही स्वरूप मिलता है। और एक प्रकार की मक्ति सालोक्य कहलाती है जिसमें कोई उसी लोक में रहता है जहाँ भगवान निवास करते हैं। साटि मुक्ति में किसी के पास वही ऐश्वर्य होते हैं जो भगवान के पास होते हैं। दूसरी प्रकार की मुक्ति में कोई सदैव भगवान के साथ रहता है-जैसे अर्जन सदैव कृष्ण भगवान के साथ मित्र की तरह रहता था। हर एक को इनमें से किसी भी प्रकार की क्ति मिल सकती है परन्त इन पाँचों में से सायुज्य मुक्ति भगवान के अव्यक्त रूप में मिलना भक्तों को कभी भी स्वीकार्य नही है। वैष्णव भगवान की उनके वास्तविक रूप मे पूजा करना चाहते हैं और अपने व्यक्तित्व को उनकी सेवा के लिए अलग रखना चाहते है, मायावादी निविशेषवादी विचारक अपने व्यक्तित्व को खोना और ब्रह्म की स्थिति में प्रवेश करके मिल जाना चाहते हैं। इस
SR No.032172
Book TitleJanma Aur Mrutyu Se Pare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA C Bhaktivedant
PublisherBhaktivedant Book Trust
Publication Year1977
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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