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कृष्ण भगवान का संग करना ।
यदि कोई किसी उच्च श्रेणी की वस्तु को पाता है तो यह स्वाभाविक है कि वह निम्न श्रेणी की वस्तु को त्याग देगा। हम आनन्द चाहते हैं परन्तु निर्विशेषवादियों और शून्यवादियों ने ऐसा वातावरण उत्पन्न किया है कि हम सांसारिक आनन्द की वस्तुओं के अभ्यस्त हो गये हैं। आनन्द परमेश्वर के साथ आमने सामने बैठकर उनसे बातें करते हुए ही प्राप्त होना चाहिए। वैकुण्ठ में हम भगवान से वार्तालाप करने,उनके साथ खेलने,उनके साथ खाने इत्यादि के योग्य होते हैं। यह सब भक्ति या परम प्रेम पूर्वक सेवा करने से ही प्राप्त किया जा सकता है। परन्तु इस सेवा में कोई मिलावट नहीं होनी चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि भगवान से प्रेम बिना किसी सांसारिक लाभ की आशा से करना चाहिए। भगवान से एक होने के लिए प्रेम करना भी एक प्रकार की मिलावट है।
अलौकिक जगत या वैकुण्ठ और इस भौतिक जगत में एक मुख्य भिन्नता यह भी है कि वैकण्ठ लोक का एक ही प्रधान या नेता होता है
और उनका कोई विरोधी नहीं होता है। हर स्थिति मे वैकुण्ठ लोक मे प्रमुख व्यक्ति कृष्ण भगवान का ही कोई रूप (विष्णु) है। भगवान और उन्हीं के विभिन्न अवतार विभिन्न वैकुण्ठ लोकों मे रहते हैं। उदाहरण के लिए इस पृथ्वी में राष्ट्रपति या मुख्य मन्त्री की पदवी के लिए विरोधी होते हैं, परन्तु वैकुण्ठ मे हर कोई भगवान को ही सर्वश्रेष्ठ स्वीकार करता है। जो उनको नहीं मानते हैं या विरोध करने का प्रयत्न करते हैं,