SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२ भगवद्गीता हमें अपने स्वरूप को जाग्रत करने की सुविधा देती है। शंकराचार्य और बुद्ध मत का अनुसरण करने वाले कहते हैं कि इस संसार के बाद केवल शून्य है। परन्तु भगवद्गीता हमें इस प्रकार निराश नहीं करती है। शून्यवाद के विचारों ने केवल नास्तिकता उत्पन्न की हैं। हम सच्चिदानन्द जीव हैं और हम आनन्द चाहते हैं परन्तु जैसे ही हमें पता लगता है कि हमारा भविष्य शून्य है तो हम इस सांसारिक जीवन में आनन्द लेंगे। इस प्रकार निर्विशेषवादी लोग शून्यवाद के विचार पर विवाद करते हैं और साथ ही साथ इस सांसारिक जीवन में जितना आनन्द लेना सम्भव हो लेते हैं। इस तरह से कोई इन मानसिक कल्पनाओं में आनन्द ले सकता है परन्तु इससे कोई आध्यात्मिक हित नहीं है। ब्रह्मभूतःप्रसन्नात्मा न शोचति न काँक्षति। समः सर्वेषुभूतेषु मदभक्ति लभते पराम।। (भ.गी.१८:५४) "जो ब्रह्मभूत के स्तर पर है वह तुरन्त परब्रह्म को जानता है। वह न तो दुःख ही करता है और न किसी चीज की इच्छा ही करता है। वह हर जीव के साथ बराबर व्यवहार करता है। ऐसी स्थित में उसे मेरी अनन्य भक्ति प्राप्त होती है।" जो भक्ति के जीवन में प्रगति कर रहा है, जो कृष्ण भगवान की सेवा का आनन्द ले रहा है,वह सांसारिक आनन्द से स्वयं ही विरक्त हो जायेगा। जो भक्ति में व्यस्त है उसका लक्षण यह है कि वह कृष्णभावना से ही पूर्ण रूप से सन्तुष्ट है।
SR No.032172
Book TitleJanma Aur Mrutyu Se Pare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA C Bhaktivedant
PublisherBhaktivedant Book Trust
Publication Year1977
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy