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________________ गोपियाँ या लक्ष्मीयाँ उनकी आदर और प्रेम के साथ सेवा कर रही हैं" ___ यह कृष्ण लोक का वर्णन है। घर चिन्तामणि-रत्न के बने हुए हैं। जिसे भी चिन्तामणि पत्थर छूता है वह तुरन्त सोना बन जाता है। इच्छा की पूर्ति करने वाले वृक्ष (कल्प वृक्ष) हैं। उनसे हर कोई जो कुछ भी चाहता है ले सकता है। इस संसार में हमें आम के वृक्ष से आम मिलता है और सेव के वृक्ष से सेव मिलता है परन्तु वहाँ कोई किसी भी वृक्ष से कोई भी चीज ले सकता है। इसी प्रकार वहाँ सुरभी गायें हैं जो असीमित दूध दे सकती हैं। वैदिक साहित्य में वैकुण्ठ लोक का यह वर्णन है। ___ इस संसार में हम जन्म, मृत्यु और अनेकों प्रकार के दुःखों से बँध गये हैं। इन भौतिक वैज्ञानिकों ने इन्द्रियों के आनन्द के लिए और विनाश करने के लिए अनेकों सुविधाजनक चीजों का आविष्कार कर लिया है परन्तु उन्होंने वृद्धावस्था, बीमारी और मृत्युजैसी समस्याओं का कोई भी हल नहीं किया है। वे किसी ऐसे यन्त्र का आविष्कार नहीं कर सकते हैं जो कि वृद्धावस्था मृत्यु और बीमारी को रोके । हम ऐसी चीज उत्पन्न कर सकते हैं जो कि मृत्यु को बढ़ाये परन्तु ऐसी चीज को नहीं जो कि मृत्यु को रोके। जो बुद्धिमान हैं वे फिर भी इस सांसारिक जीवन के चार प्रकार के दुःखों से मतलब नहीं रखते हैं बल्कि वैकुण्ठ लोक में प्रगति से रखते हैं। जो सदैव समाधि (नित्य युक्तस्य योगिनः) में रहता है वह अपना ध्यान किसी अन्य चीज में नहीं देता है। वह सदैव समाधि में स्थिर रहता है। उसका मस्तिष्क सदैव कृष्ण भगवान के विचार में बिना किसी विक्षेप के (अनन्य चेता: सततम्) लगा रहता है। सततम् से तात्पर्य किसी भी जगह किसी भी समय से है। ____ भारत में मैं वृन्दावन में रहता था और अब मैं अमरीका में रहता हूँ परन्तु इससे यह तात्पर्य नहीं है कि मैं वृन्दावन के बाहर हूँ ; क्योंकि यदि मैं सदैव कृष्ण भगवान के विषय में सोचूँ तो मैं किसी भी सांसारिक उपाधि के होने पर भी मैं वृन्दावन में हूँ। कृष्ण भावना का अर्थ है कि
SR No.032172
Book TitleJanma Aur Mrutyu Se Pare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA C Bhaktivedant
PublisherBhaktivedant Book Trust
Publication Year1977
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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