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________________ वे कुछ संग पाने का प्रयास करेंगे। क्योंकि वे व्यक्तिगत रूप से भगवान् की सङ्गत नहीं करते हैं इसलिए उन्हें इस दुनियाँ में फिर से आकर • बँधे हुए जीवों के संग में रहना होगा। ___ इसलिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण बात है कि हम अपने स्वरूप को समझें हम सत्यता, पूर्ण ज्ञान और आनन्द भी चाहते हैं। जब हम अधिक समय के लिए अकेले छोड़ दिये जाते हैं तो हमें आनन्द नहीं मिलता है और तब हम इस संसार के आनन्द को स्वीकार करते हैं। कृष्ण भावना में वास्तविक आनन्द मिलता है। इस संसार में साधारणतया मैथुन करना ही सबसे ऊँचा आनन्द माना जाता है। यह आनन्द वैकुण्ठ में कृष्ण भगवान की सन्निधि के आनन्द की विकृत छाया है। परन्तु हमें नहीं सोचना चाहिए कि वह आनन्द इस संसार के मैथुन के आनन्द जैसा है। नहीं, वह भिन्न है। परन्तु जब तक वैकुण्ठ में युगल जीवन नहीं है तब तक उसकी परछाई यहाँ नहीं हो सकती है। यहाँ यह केवल विकृत परछाई है परन्तु वास्तविक जीवन वहाँ कृष्ण भगवान में है जो कि सभी आनन्दों से पूर्ण हैं । इसलिए सबसे उत्तम विधि कृष्ण भक्ति का अभ्यास करना है जिससे मृत्यु के बाद, हम वैकुण्ठ में कृष्ण लोक और कृष्ण भगवान की सङ्गत में पहुँच जायें। 'ब्रह्म संहिता' में कृष्ण भगवान और उनके लोक का वर्णन इस प्रकार है: चिन्तामणिप्रकरसद्मनुकल्पवृक्षलक्षावृतेषु सुरभीरभिपालयन्तम् । लक्ष्मीसहस्रशतसम्भ्रमसेव्यमानं गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि ।।. (ब्रह्म संहिता ५:२६) “मैं गोविन्द का भजन करता हूँ जो कि आदि पुरुष हैं, सबके जन्मदाता हैं जो सब इच्छायें पूरी करने वाली सुरभी गायें चरा रहे हैं, जिनका निवास स्थान चिन्तामणि रत्नों का बना है, जहाँ करोड़ों इच्छा पूरी करने वाले (कल्प) वृक्ष हैं, जहाँ सैकड़ों और हजारों
SR No.032172
Book TitleJanma Aur Mrutyu Se Pare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA C Bhaktivedant
PublisherBhaktivedant Book Trust
Publication Year1977
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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