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________________ ४ मूल ग्रन्थगत विशिष्ट शब्दानुक्रमणिका मर्थ गाथांक मक्कंदण अजोगी अज्जब माझवसाण अट्टज्माण अणज्ज अणिच्चाइभावणा अणुचिंता संस्कृत रूप आत्रन्दन अयोगिन् प्रार्जव अध्यवसान प्रार्तध्यान अनार्य अनित्यादिभावना अनुचिन्ता अनुत्तरामर अनुप्रेक्षा अनुभाव २, २६ मनुत्तरामर अणुपेहा अणुभाव अत्थ प्रमण प्रमणुण्ण अमन अमनोज अवध अवह महान शब्द के द्वारा चिल्लाना शैलेशी केवली मायापूर्ण व्यवहार का त्याग मन, एकाग्रता का आलम्बन संक्लेश रूप परिणाम हेय धर्म प्रवर्तक अनित्यादि भावनाओं का चिन्तन विस्मरण न होने देने के लिए मन से ही सूत्र का अनुस्मरण अनुत्तर विमानवासी देव स्मृतिरूप ध्यान से भ्रष्ट हुए जीव की चित्तवृत्ति कर्मविपाक द्रव्य-पर्याय अन्तःकरण से रहित केवली मन के प्रतिकूल, अनिष्ट परीषह व उपसर्ग के द्वारा ध्यान से विचलित या भयभीत न होना अपाय, दुख अर्थ, व्यंजन और योग के संक्रमण से रहित व्रत रहित मिथ्यादृष्टि व सम्यग्दृष्टि असभ्य वचन, अपशब्द तीन प्रकार का असत्य वचन सूक्ष्म पदार्थों व देवमाया के विषय में मूढता __ का प्रभाव कुत्ता व शृगाल आदि के पांवों से चिह्नित करना भिन्नमुहूर्त काल सूत्र सूत्र का अर्थ स्व अथवा अन्य के महती आपत्ति को प्राप्त होने पर भी कालसौकरिक के समान मरण पर्यन्त पश्चाताप न करना सूत्रार्थ के ज्ञान के लिए मुमुक्षु जन जिसकी सेवा किया करते हैं भवाय अबियार अविरव: असम्भवयण असम्भूय वयण असम्मोह अवाय अविचार अविरत असभ्य वचन असद्भूत वचन .. असम्मोह अंकण अंकन अंतोमुहुत्त आगम अन्तर्मुहर्त प्रागम आज्ञा आमरण दोष प्राणा आमरणदोस पायरिय प्राचार्य
SR No.032155
Book TitleDhyanhatak Tatha Dhyanstava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhadrasuri, Bhaskarnandi, Balchandra Siddhantshastri
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year1976
Total Pages200
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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