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विकारः ]
इन्द्रयव, परवलकी पत्ती तथा कुटकीका क्वाथ सन्ततज्वरको, परवलकी पती शारिवा, नागरमोथा, पाढ़ी तथा कुटकीका सततज्वरको, नीमकी छाल, परवलकी पत्ती, त्रिफला, मुनक्का, नागरमोथा, व कुड़ेकी छाल, अन्येयुष्कज्वरको, चिरायता, गुर्च, लालचन्दन, सोंठ तृतीयज्वरको तथा गुर्च, आमला व नागरमोथाका ate चतुर्थिकज्वरको शान्त करता है ॥ १९८ - २०१ ॥ त्रिफलाक्वाथः ।
भाषाटीकोपेतः ।
गुडप्रगाढां त्रिफलां पिबेद्वा विषमार्दितः । विषमज्वरसे पीड़ित पुरुषको त्रिफलाका क्वाथ गुड़ मिलाकर पीना चाहिये ।
गुडूच्यादिक्वाथः ।
गुडूचीमुस्तधात्रीणां कषायं वा समाक्षिकम् ।। २०२ अथवा गुर्च, नागरमोथा व आमलाका क्वाथ बना ठण्ढाकर शहद डालके पीना चाहिये ॥ २०२ ॥
योगान्तरम् ।
दीर्घपत्रक कर्णाख्यनेत्रं खदिरसंयुतम् । ताम्बूलैस्तद्दिने भुक्तं प्रातर्विषमनाशनम् ॥ २०३ ॥ लहसुनका बीज तथा कत्था प्रातःकाल पानमें रखकर खानेसे विषमज्वर नष्ट होता है ॥ २०३ ॥
मुस्तादिक्वाथः । मुस्तामलकगुडूचीविश्वौषधकण्टकारिकाक्वाथः । पीतः सकणाचूर्णः समधुर्विषमज्वरं हन्ति ॥ २०४॥ नागरमोथा, आमला, गुर्च, सोंठ तथा छोटी कटेरीका क्वाथ, छोटी पीपलका चूर्ण तथा शहद मिलाकर पीनेसे विषमज्वरको नष्ट करता है ॥ २०४ ॥
महौषधादिक्वाथः । महौषधामृतामुस्तचन्दनोशीरधान्यकैः ।
क्वाथस्तृतीयकं हन्ति शर्करामधुयोजितः || २०५ || सोंठ, गुर्च, नागरमोथा, लालचन्दन, खश तथा धनियांका क्वाथ मिश्री तथा शहद मिलाकर पीनेसे तृतीयकज्वर नष्ट होता है ॥ २०५ ॥
वासादिकाथः । वासाधात्रीस्थिरादारुपथ्यानागरसाधितः । सितामधुयुतः क्वाथश्चातुर्थिकनिवारणः । २०६ ॥ . अडूसा, आमला, शालिपर्णी, देवदारु, छोटी हरड़ तथा सोंठका क्वाथ मिश्री तथा शहद मिला हुआ चातुर्थिक ज्वरको नष्ट करता है ॥ २०६ ॥
सामान्यचिकित्सा |
मधुना सर्वज्वरनुच्छेफालीदलजो रसः ।
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( १९ )
अजाजी गुडसंयुक्ता विषमज्वरनाशिनी । अग्निसादं जयेत्सम्यग्वातरोगांश्च नाशयेत् ॥ २०७॥ सम्भालू अथवा हरसिंगार के पत्तों का रस शहद के साथ सेवन करनेसे समस्त विषमज्वर शान्त होते हैं । सफेद जीरे का चूर्ण गुड़के साथ विषमज्वर, अग्निमान्य तथा वातरोगोंको नष्ट करता है ॥ २०७ ॥
रसोनकल्कं तिलतैलमिश्रं यो नाति नित्यं विषमज्वरार्तः । विमुच्यते सोऽप्यचिराज्ज्वरेण वातामयैश्चापि सुघोररूपैः ॥ २०८ ॥ जो मनुष्य लगातार लहसुन की चटनी तिलतैल मिलाकर चाटता है, वह विषमज्वर तथा कठिन वातरोगों से शीघ्र ही मुक्त हो जाता है ॥ २०८ ॥
प्रातः प्रातः ससर्पिर्वा रसोनमुपयोजयेत् । पिप्पलीं वर्द्धमानां वा पिबेत्क्षीररसाशनः ॥ २०९॥ षट्पलं वा पिबेत्सर्पिः पध्यां वा मधुना लिहेत् । प्रातःकाल घीके साथ लहसुनका प्रयोग करना चाहिये । अथवा दूध अथवा मांसरसका भोजन करता हुआ वर्द्धमानपिप्पली का प्रयोग करे । अथवा षट्पल घृत ( आगे लिखेंगे ) पीवे । या शहद के साथ छोटी हर्रका चूर्ण चाटे ॥ २०९ ॥
पयस्तैलं घृतं चैव विदारीक्षुरसं मधु ।। २१० ॥ सम्म पाययेदेतद्विषमज्वरनाशनम् । विषमज्वर नाश करनेके लिये दूध, तेल, घी, विदारीकन्दका रस, ईखका रस, शहद एकमें मिलाकर पिलाना चाहिये॥२१०॥ पिप्पलीशर्कराक्षौद्रं घृतं क्षीरं यथाबलम् ।
खजेन मथितं पेयं विषमज्वरनाशनम् ।। २११ ॥ छोटी पीपल, मिश्री, शहद, घी व दूध मथानीसे मथकर अपनी शक्तिके अनुसार पीना चाहिये । इससे विषमज्वर नष्ट होगा ॥ २११ ॥
पयसा वृषदंशस्य शकृद्वेगागमे पिबेत् ।
वृषस्य दधिमण्डेन सुरया वा ससैन्धवम् ॥ २१२ ॥ बिडालकी विष्ठा दूधके साथ, अथवा बैलका गोबर, सेंधानमक मिलाकर दहीके तोड़ या शराबके साथ पीना चाहिये ॥ २१२ ॥
१ जीरा भूनकर चूण बनाना चाहिये ।
२ वर्धमानपिप्पली ३ या ५ या ७ बलाबलके अनुसार ११ दिन या २१ दिन तक प्रतिदिन बढ़ाना चाहिये । उसी प्रकार उतने ही दिनमें घटाना चाहिये । ऐसा शास्त्रोक्त विधान है । पर आजकलके लिये १ या ३ पीपलसे बढ़ाना हितकर होगा ॥ ३ इस योग में दूध गरम किया हुआ अष्टगुण तथा
१ - यह योग अधिकतर चातुर्थिक ज्वरमें लाभ करता है | | अन्य द्रव्य १ भाग प्रत्येक छोड़ना उचित होगा ।