________________
धिकारः] भाषाटीकोपेतः।
(३०१) सन्न्नन्न्न्न्नन्नन्
सिरसाके बीज, सेहुण्डके दूधके साथ अथवा काले अंको- धनधान्यकार्यसिद्धिश्रीपुष्टिवर्णायुर्वर्धनो धन्यः । हरकी जड़ और कूठका ३ दिन लेप करनेसे मण्डूकविष नष्ट | मृतसञ्जीवन एष प्रागमृताद् ब्रह्मणाभिहितः॥२८॥ होता है ॥२७॥
मालतीके फूल, केवटी मोथा, गठीना, फिटकरी, छरीला, लालाविषचिकित्सा ।
गोरोचन, तगर, रोहिष, केशर, जटामांसी, तुलसी, त्रिफला मरिचमहौषधवालकनागालैमक्षिकाविषे लेपः। छोटी इलायची, कत्था, बड़ी कटेरी, सिरसाके फूल, गन्धा. लालाविषमपनयतो मूले मिलिते पटोलनीलिकयोः।। बिरोजा, कमल, भुइआमला, इन्द्रायण, देवदारु , कमलका
केशर, शावरलोध, मनाशिल, सम्भालूके बीज, चमेलीके फूल, काली मिर्च, सोंठ, सुगन्धवाला तथा नागकेशरको पीसकर
| आकके फूल, सरसों, हल्दी, दारुहल्दी, हींग, छोटी पीपल, बनाया गया लेप मक्खियोंके विषको तथा परवल और नीलकी
मुनक्का, सुगन्धवाला, मुद्गपर्णी, मौरेठी, देवना, सम्भालू, जड़का लेप लालाविषको नष्ट करता है ॥ २८ ॥
अमलतास, लोध, अपामार्ग, प्रियंगु, कलिहारी व वायविडङ्ग, नखदंतविषे लेपः।
समस्त द्रव्य समान भाग ले कूट पीसकर पुष्य नक्षत्रमें गोली सोमवल्कोऽश्वकर्णश्च गोजिह्वा हंसपाद्यपि ।
| बनानी चाहिये । यह समस्त विषोंको नष्ट करता, विषसे रजन्यौ गैरिकं लेपो नखदन्तविषापहः ॥ २९ ॥
मरते हुएको बचाता तथा ज्वर नष्ट करता है । यह
पोने, लेप करने, धारण करने, धूम पीने तथा घरमें रखनेसे सफेद कत्था, राल, गाउजुबां, हंसराज, हल्दी, दारु-1.
भी लाभ करता है। तथा भूत, विष, क्रिमि, दरिद्रता, मन्त्र हल्दी, और गेरूका . लेप नख और दन्तविषका नष्ट प्रयोग, अग्नि, वज्र और शत्रुओंके भय, दुःस्वप्न, स्त्रीदोष, करता है ॥ २९ ॥
अकाल मृत्यु, जल तथा चोरभयको दूर करता है । यह “ मृतकीटविषचिकित्सा।
सजीवन "घन, धान्य, कार्यसिद्धि, लक्ष्मी, पुष्टि, वर्ण और वचा हिङ्गु विडङ्गानि सैन्धवं गजपिप्पली।।
आयुको अधिक बढाता, अतः धन्य है। इसे श्रीब्रह्माजीने अमृ.
तके पहिले कहा है ॥ ३२-३८॥ पाठा अतिविषा व्योषं काश्यपेन विनिर्मितम् ३०
इति विषाधिकारः समाप्तः।। दशाङ्गमगदं पीत्वा सर्वकीटविषं जयत् । कीटदष्टक्रियाः सर्वाः समानाः स्युर्जलौकसाम्॥३॥ अथ रसायनाधिकारः।
बच, हींग, वायविडङ्ग, सेंधानमक, गजपीपल, पाढ, अतीस, व त्रिकटु इन दश चीजोंका लेप "दशांग अगद" कहा जाता है । यह समस्त कीटविषोंको नष्ट करता है। इसी प्रकार
सामान्यव्यवस्था। जोंकोंके विषमें भी समस्त कीटविषनाशक चिकित्सा करनी चाहिये ॥३०॥३१॥
बजराव्याधिविध्वंसि भेषजं तद्रसायनम् । मृतसञ्जीवनोगदः।
पूर्वे वयसि मध्ये वा शुद्धदेहः समाचरेत् ॥ १॥
नाविशुद्धशरीरस्य युक्तो रासायनो विधिः ॥१॥ स्पृक्काप्लवस्थौणेयकांक्षीशैलेयरोचनातगरम् ।
नाभाति वाससि म्लिष्टे रङ्गयोग इवार्पितः॥२॥ ध्यामकं कुङ्कुमं मांसी सुरसात्रिफलैलकुष्ठन्नम् ॥
जो औषधवृद्धावस्था व रोगको नष्ट करती है, उसे “रसायन" बृहतीशिरीषपुष्पश्रीवेष्टकपद्मचाटिविशालाः। !
कहते हैं। उसका प्रयोग बाल्यावस्था व युवावस्थामें शुद्ध शरीर सुरदारुपद्मकेशरशावरकमनःशिलाकौन्त्यः ॥३३॥ (वमनादिसे ) होकर करना चाहिये, शरीरकी शुद्धि विना रसाजात्यर्कपुष्पसर्षपरजनीद्वयहिगुपिप्पलीद्राक्षाः ॥ यनप्रयोग लाभ नहीं करता, जिस प्रकार मैले कपड़ेपर रङ्ग नहीं जलमुद्गपर्णीमधूकदमनकमथ सिन्धुवाराश्च ॥३४॥ चढ़ता ॥१॥२॥ सम्पाकलोध्रमयूरकगन्धफलीलागलीविडंगाः।
पथ्यारसायनम् । पुष्ये समुद्धृत्य समं पिष्ट्वा गुडिका विधेयाःस्युः३५/
गुडेन मधुना शुण्ठ्या कणया लवणेन वा। सर्वविषघ्नो जयकृद्विषमृतसञ्जीवनो ज्वरनिहन्ता । द्वे द्वे खादन्सदा पथ्ये जीवेद्वर्षशतं सुखी ॥३॥ पेयविलेपनधारणधूम्रग्रहणैर्गृहस्थश्च ।। ३६ ॥ | गुड़, शहद, सोंठ, छोटी पीपल, व नमक इनमेंसे किसी एक भूतविषजन्त्वलक्ष्मीकार्मणमन्त्राग्न्यशन्यरीन्हन्यात् | के साथ प्रतिदिन २ छोटी हर्र खानेसे १०० वर्षतक नीरोग दुःस्वप्नस्त्रीदोषानकालमरणाम्बुचौरभयम् ॥३६॥ रहकर १०० वर्षतक मनुष्य जीता है ॥ ३ ॥