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धिकारः]
भाषाटीकोपतः।
(१८१)
प्लीहयकृत्प्रशान्त्यर्थ पिबेत्प्रातर्यथाबलम् । शाङ्गेष्टानिय॒हः ससैन्धवस्तिन्तिडीकसंमिश्रः । पातव्यो युक्तितः क्षारः क्षीरणोदधिशुक्तिजः ॥५॥ प्लीहव्युपरमयोग्यः पक्काम्ररसोऽथवा समधुः ॥११॥
पयसा वा प्रयोक्तव्याः पिप्पल्यः प्लीहशान्तये । | लहसुन, पिपरामूल व बड़ी हर्रका प्रयोग करे । __ ढाकके क्षारमें भावित पिप्पलीका प्रयोग करना चाहिये । अथवा गोमूत्रको गण्डूषमात्रकी मात्रामें प्लीहारोगकी यह गुल्म और प्लीहाको नष्ट करती अग्निको दीप्त करती | शान्तिके लिये पीवे । तथा शरपुंखाका कल्क मट्ठके तथा रसायन है । इसी प्रकार वायविडङ्ग, घृत, चीतकी जड, साथ पीनेसे प्लीहा नष्ट होती है । प्लीह नाशक पेयाका पथ्य सेंधानमक, सत्तू और बचको अन्तर्धूम जला कर चूर्ण बना लेते हुए शरपुंखाको चबानेसे अथवा काक जंघाके क्वाथमें दूधके साथ पीनसे गुल्म, प्लीहा तथा उदररोग शान्त होते हैं। सेंधानमक और तितिड़ीकको मिलाकर पीनेसे अथवा पके इसी प्रकार तालपुष्पका क्षार गुड़के साथ प्लीहाको नष्ट करता हुए आमके रसको शहद मिलाकर चाटनेसे प्लीहाकी शांति है । अथवा विडलवण, छोटी पीपल और काजीका क्षार होती है ॥ ९-११॥ काओके साथ बलानुसार पीनेसे प्लीहा व यकृत् शान्त होते हैं। अथवा दूधके साथ समुद्रसीपके क्षारका प्रयोग करना
अत्र शिराव्यधविधिः। चाहिये । अथवा दूधके साथ छोटी पीपलका प्रयोग करना दध्ना मुक्तवतो वामबाहुमध्ये शिरां भिषक् । चाहिये ॥२-५॥
विध्येत्प्लाहविनाशाय यकृन्नाशाय दक्षिणे ॥१२॥ ___ भल्लातकमोदकः।
प्लीहानं मर्दयेद्गाढं दुष्टरक्तप्रवृत्तये ।
| दहीके साथ भोजन कराकर वैद्यको प्लीहानाशार्थ वामबाभल्लातकाभयाजाजी गुडेन सह मोदकः ॥६॥ हमें तथा यकृत्शान्त्यर्थ दक्षिणबाहुमें शिराव्यध करना चाहिये सप्तरातानिहन्त्याशु प्लीहानमतिदारुणम् । तथा दूषितरक्तके निकालनके लिये प्लीहाको जोरसे दबाना भिलावां, बड़ी हर्रका छिल्का तथा जीराको गुड़में मिला-चाहिये ॥ १२॥कर वनायी गयी गोलियां सात रात्रिमें प्लीहाको नष्ट करती हैं ॥६॥
परिकरो योगः। प्रयोगद्यम् ।
माणमार्गामृतावासास्थिराचित्रकसैन्धवम् ॥ १३ ॥
नागरं तालखण्डं च प्रत्येकं तु त्रिकार्षिकम् । शोभांजनकनियुंह सैन्धवाग्निकणान्वितम् ॥७॥
विडसौवर्चलक्षारपिप्पल्यश्चापि कार्षिकाः ।। १४॥ पलाशक्षारयुक्तं का यवक्षारं प्रयोजयेत् । एतच्चूर्णीकृतं सर्व गोमूत्रस्याढके पचेत् । (१) सहिजनके क्वाथके साथ सेंधानमक, चीतकी जड़ वं
सान्द्रीभूते गुडी कुर्यादत्त्वा त्रिपलमाक्षिकम्॥१५॥ छोटी पीपलके चूर्णको मिलाकर पीना चाहिये । अथवा
यकृत्प्लीहोदरहरो गुल्मार्टोग्रहणीहरः। (२) ढाकके क्षारके साथ जवाखारका प्रयोग करनेसे प्लीहा दूर योगः परिकरो नाम्नाचाग्निसन्दीपनः परः॥१६॥ होती है।
माणकन्द, अपामार्ग, गुर्च, अडूसा, शालिपर्णी, चीतकी यकृचिकित्सा।
जड़, सेंधानमक, सोंठ तथा ताड़की फली ( जो आजकल
नकली गजपीपलके नामसे बेचते हैं) प्रत्येक ३ तोला, विड़तिलान्सलवणांश्चैव घृतं षट्पलकं तथा ॥८॥
| नमक, कालानमक, जवाखार व छोटी पीपल प्रत्येक १ कर्ष प्लीहोद्दिष्टां क्रियां सर्वा यकृतः संप्रयोजयेत् ।
सबका चूर्ण कर गोमूत्र १ आढक' (द्रवद्वैगुण्यात् ६ सेर ३२ काले तिल व नमक अथवा षट्पलघृत तथा प्लीहाकी समस्त
तो०) में पकाना चाहिये । गाढा हो जानेपर शहद १२ तोला चिकित्सा यकृतमें प्रयुक्त करनी चाहिये ॥८॥
छोड़कर गोली बनानी चाहिये । यह यकृत, प्लीहा, उदर, विविधा योगा।
गुल्म, अर्श, प्रहणीको नष्ट करता तथा आग्निको दीप्त करता है।
इसे “परिकरयोग " कहते हैं ॥ १३-१६ ॥ लशुनं पिप्पलामूलमभयां चैव भक्षयेत् । पिबद् गोमूत्रगण्डूषं प्लीहरोगविमुक्तये ॥९॥
रोहीतकचूर्णम् । प्लीहजिच्छरपुलायाः कल्कस्तकेण सेवितः। | रोहीतकाभयाक्षादभावितं मूत्रमम्बुवाः । शरपुङ्खव संचळ जग्धापेयाभुजाथवा ॥१०॥ | पीतं सर्वोदरप्लीहमेहार्शःक्रिमिगुल्मनुत् ॥ १७ ॥