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विकारः]
मापाटीकोतः। --- w
w w - - - वेलका गूदा, अरहरकी पत्ती, व धायके फूल, पञ्चकोल,
गण्डूषस्तालशोथे। तथा कुशसे सिद्ध जल कफज तृष्णाको दूर करता है । तथा नीमके क्वाथसे वमन करना इसमें विशेष हित करता है । मद्यमें क्षीरेक्षुरसमाध्वीकैः क्षौद्रशीधुगुडोदकैः। आधा जल और जीरा, अदरख, सोंठ व काला नमक मिलाकर |
वृक्षाम्लाम्लैश्च गण्डूषस्तालुशोषनिवारणः ।। १५॥ पीनेसे तृष्णा शीघ्र ही शान्त होती है ॥७॥८॥
दूध, ईखका रस, माध्वीक ( मधुका आसव ) शहद, शीधु क्षतक्षयजचिकित्सा।
(मधुर द्रव्योंका आसव) शर्वत अम्लवेत, काली इनमेंसे किसी
। एकसे गंडूष धारण करना-तालु शोषको नष्ट करता है ॥१५॥ क्षतोत्थितां रुग्विनिवारणेन जयद्रसानामसृजश्च पानः।
__ अन्ये योगाः। क्षयोस्थितां क्षीरजलं निहन्या
तालुशोषे पिबेत्सर्पिघृतमण्डमथापि वा। न्मांसोदकं वाथ मधूदकं वा ॥ ९॥ क्षतोत्थित तृष्णामें पीड़ा शान्तकर मांसरस रक्त पिलाना
मूच्छोंच्छर्दितृषादाहस्त्रीमद्यभृशकर्शिताः ॥ १६ ॥ चाहिये । क्षयोत्थित तृष्णाको दूध और जल अथवा मांसरस |
पिबेयुः शीतलं तोयं रक्तपित्ते मदात्यये । तथा शहदका शर्बत शान्त करता है.॥९॥
धान्याम्लमास्यवैरस्यमलदोर्गन्ध्यनाशनम् ॥ १७ ॥
तदेवालवणं पीतं मुखशोषहरं परम् । सर्वजतृष्णाचिकित्सा।
वैशा जनयत्यास्थे संदधाति मुखवणान् ॥ १८॥ गुर्वन्नजामुल्लिखनैर्जयेत्तु.क्षयाहते सर्वकृतां च तृष्णाम्॥ दाहतृष्णाप्रशमनं मधुगण्डूषधारणम् । लाजोदकं मधुयुतं शीतं गुडविमार्दतम् ।
तालुशोषमे घृत अथवा धृतमण्ड पीना चाहिये । काश्मर्यशर्करायुक्तं पिबेत्तृष्णादितो नरः ॥ १०॥ मूर्छा, छर्दि, तृष', दाह, स्त्रीगमन व मद्य पीनेसे कुश
गुर्वन्नजन्य तृष्णामें वमन कराना चाहिये । तथा क्षयजको पुरुषोंको तथा रक्तपित्त व मदात्ययमें ठण्ढा ही जल छोडकर समस्त तृष्णाओंको वमन शान्त करता है । खीलसे पीना चाहिये । काजी मुखकी विरसता, मल तथा दुर्गन्धिको सिद्ध जलको ठंढाकर गुड़, खम्भार व शकर मिला कर पानसे नष्ट करती तथा बिना नमक पीनेसे मुखशोषको शान्त करती समस्त तृष्णाएँ शान्त होती हैं ॥१०॥
है । इसी प्रकार मधुका गण्डूष मुखको साफ करता, मुखके
घावोंको भरता तथा दाह व तृष्णाको शान्त करता है ॥१६॥१८ सामान्यचिकित्सा। अतिरूक्षदुबैलानां तर्षे शमयेन्नृणामिहाशु पयः।
मुखालेपः। छागो वा घृतभृष्टः शीतो मधुरो रसो हृद्यः।। ११॥ कोलदाडिमवृक्षाम्लचक्रीकाचक्रिकारसः॥ १९ ॥ आम्रजम्बूकषायं वा पिबेन्माक्षिकसंयुतम् । पश्चाम्लको मुखालेपः सद्यस्तृष्णां नियच्छति । छदि सर्वा प्रणुदति तृष्णां चैवापकर्षति ॥ १२॥ वेर, अनार, वृक्षाम्ल, चूका और इमलीके रसका मुखके वटशुङ्गसितालोध्रदाडिमं मधुकं मधु । भीतर लेप करनेसे तत्काल तृष्णा शान्त होती है ॥ १९॥- . पिबेत्तण्डुलतोयेन छर्दितृष्णानिवारणम् ।। १३ ॥
वारिणा वमनम्। गोस्तनेक्षुरसक्षीरयष्टीमधुमधूत्पलैः ।
वारि शीतं मधुयुतमाकण्ठाद्वा पिपासितम् ॥२०॥ नियतं नस्यतः पानेस्तृष्णा शाम्यति दारुणा॥१४॥
पाययेद्वामयेचापि तेन तृष्णा प्रशाम्यति । अतिरूक्ष तथा दुर्बल पुरुषोंकी तृष्णाको दूध अथवा बक-1.
• ठण्ढा जल शहद मिला कण्ठ पर्यन्त पिलाकर वमन करानेसे रेका मांसरस घीमें भून ठंडा कर मधुर द्रव्य मिलाकर पीनेसे |
दृष्णा शान्त होती है ॥ २० ॥शान्त करता है । इसी प्रकार आम और जामुनकी पत्तीका काढा शदद मिलाकर पीनसे समस्त छर्दि तथा तृष्णाएँ नष्ट
वटशुङ्गादिगुटीः। होती हैं । बरगदके कोमल पत्ते, मिश्री, लोध, अनारदाना, मोरेठी, शहद-सब मिला चावलके जलके साथ पानसे छर्दि
वडशुङ्गामयक्षौद्रलाजनीलोत्पलैईढा ॥ २१ ॥ तथा तृष्णा नष्ट होती है । तथा मुनक्का, ईखका रस, दूध,
गुटिका वदनन्यस्ता क्षिप्रं तृष्णां नियच्छति । मोठी, शहद और नीलोफरको मिलाकर नाकके द्वारा पीनसे वरगदकी कोंपल, कूठ, शहद, खील तथा नीलोफरकी दृढ कठिन तृष्णा शान्त होती है॥११-१४॥
गोली बनाकर मुखमें रखनेसे तत्काल तृष्णा शान्त होती है २१॥