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पियपुत्तमित्तघरघरणीजाय, इहलोइय सव्व नियसुहसहाय । न वि अस्थि कोइ तुह सरणि मुक्ख, इक्ल्लु सहसि तिरिनिरयदुक्ख ॥ ७१ ॥
कुसग्गे जह ओसबिंदुए, थोवं चिट्ठइ लंबमाणए । एवं मणुआण जीवियं, समयं गोयम मा पमायए ॥७२॥
संबुज्झह किं न बुज्झह, संबोही खलु पिच्च दुल्लहा । नो हु उवणमंति राइओ, नो सुलहं पुणरवि जीवियं ॥ ७३ ॥ डहरा वट्ठा य पासह, गब्भत्था वि चयंति माणवा । सेणे जह वट्टयं हरे, एवमाउक्खयम्मि तुट्टइ ॥ ७४ ॥ तिहुयणजणं मरंतं, दट्ठूण नयंति जे न अप्पाणं । विरमंति न पावाओ, धी धी धिट्टत्तणं ताणं ॥ ७५ ॥ मा मा जंपह बहुयं, जे बद्धा चिक्कणेहिं कम्मेहिं । सव्वेसि तेसि जायइ, हिओवएसो महादोसो ॥ ७६ ॥ कुणसि ममत्तं धणसयण-विहवपमुहेसुऽणंतदुक्खेसु । सिढिलेसि आयरं पुण, अणंतसुक्खम्मि मुक्खम्मि ॥ ७७ ॥
संसारो दुहहेउ, दुक्खफलो दुसहदुक्खरूवो य । न चयंति तंपि जीवा, अइबद्धा नेहनिअलेहिं ॥ ७८ ॥