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एको बंधइ कम्मं, एगो वहबंधमरणवसणाई | विसहइ भवम्मि भमडइ, एगुच्चिअ कम्मवेलविओ ॥ २६॥ अन्नो न कुणइ अहिअं, हिअंपि अप्पा करेइ न हु अन्नो । अप्पकयं सुह- दुक्खं, भुंजसि ता कीस दीणमुहो ॥ २७ ॥ बहुआरंभविढत्तं, वित्तं विलसंति जीव ! सयणगणा । तज्जणियपावकम्मं अणुहवसि पुणो तुमं चेव ॥ २८ ॥
अह दुक्खिआई तह, भुक्खिआई जह चिंतिआई डिंभाई । तह थोवंपि न अप्पा, विचितिओ जीव किं भणिमो ? ॥ २९ ॥
खणभंगुरं सरीरं, जीवो अन्नो अ सासयसरूवो । कम्मवसा संबंधो, निब्बंधो इत्थ को तुज्झ ॥ ३० ॥ कह आयं कह चलियं, तुमंपि कह आगओ कहं गमिही । अन्नुन्नंपि न याणह, जीव ! कुटुंबं कओ तुज्झ ? ॥ ३१॥ खणभंगुरे सरीरे, मणुअभवे अब्भपडलसारिच्छे। सारं इत्तियमेत्तं, जं किरइ सोहणो धम्मो ॥ ३२ ॥
जम्मदुक्खं जरादुक्खं, रोगा य मरणाणि य । अहो दुक्खो हु संसारो, जत्थ कीसंति जंतुणो ॥ ३३ ॥ जाव न इंदियहाणी, जाव न जररक्खसी परिप्फुरइ । जाव न रोगविआरा, जाव न मच्चू समुल्लिअइ ॥ ३४ ॥