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कि तुम सब परमात्मा के ऊपर छोड़ दो। वह जैसा करवाये वैसा करो। वह जैसा उठाये वैसा उठो । वह जैसा बैठाये वैसा बैठो। और जब मैं यह कह रहा तो फिर दोहरा दूं-बेशर्त। इसमें कोई शर्त बंधी नहीं है कि तू अच्छा करायेगा तो करेंगे, बुरा करायेगा तो न करेंगे।
वही तो अर्जुन के सामने सवाल था। वह कृष्ण से इसीलिए तो कहने लगा कि यह युद्ध मैं न करूंगा। इसमें तो पाप लगेगा। इसमें तो हिंसा होगी। इसमें तो प्रियजनों को मार डालूंगा। इस राज्य को लेकर भी क्या करूंगा ? इतने सब अपने प्रियजनों को मारकर अगर यह राज्य मिला भी तो मरघट पर सिंहासन रखकर बैठना हो जायेगा। आदमी तो अपनों के लिए ही युद्ध करता। अपने होते तो ही तो सुख होता सिंहासन पर बैठने का। अपने ही न हुए तो क्या सुख किसको दिखाऊंगा ? मुझे जाने दो, अर्जुन कहने लगा, चला जाऊंगा दूर जंगल में। संन्यस्त हो जाऊंगा।
कृष्ण की सारी गीता एक बात समझाती है कि परमात्मा जो कराये, बेशर्त। युद्ध कराये तो युद्ध। अच्छा तो अच्छा, बुरा तो बुरा। तुम बीच में न आओ। तुम्हारा निमित्त होना परिपूर्ण हो। तुम चुनो। तुम्हारा होना चुनावरहित हो। तभी तुम तुम्हारा समर्पण किये अन्यथा तुमने समर्पण न किया जहां समर्पण है वहां स्फुरणा है। समर्पण, स्फुरणा साथ-साथ है। बाहर समर्पण, भीतर स्फुरणा। जिसने समर्पण नहीं किया वह कभी स्फुरणा को उपलब्ध न हो सकेगा।
और इसको कहा है अलक्ष्यस्फुरणा ।
शुद्धस्फुरणरूपस्य ..... ।
अलक्ष्य का अर्थ होता है अकारण। परमात्मा का कोई कारण नहीं है, परमात्मा सबका कारण है। सब उसने बनाया, उसे किसी ने नहीं बनाया। सबके पीछे वह है, उसके पीछे कुछ भी नहीं है। वह कारणों का कारण है। अकारण है। वह मूलभूत है। उससे मूलभूत फिर कुछ भी नहीं है। वह जड़ है; उसके पार फिर कुछ भी नहीं है । न उसके नीचे कुछ है न उसके ऊपर कुछ है। सब उसके भीतर है।
तो जो परमात्मा से होता है वह अकारण होता है। तुम हो, किस कारण हो? मन में सवाल उठते हैं, किसलिए हूं मैं? क्या कारण है मेरे होने का ? सिर्फ इस देश में उसका ठीक-ठीक उत्तर दिया गया है। सारी दुनिया में उत्तर देने की कोशिश की गई है। ईसाई कहते हैं कुछ मुसलमान कहते हैं कुछ, यहूदी कहते हैं कुछ लेकिन सिर्फ इस देश में ठीक-ठीक उत्तर दिया गया है। इस देश का उत्तर बड़ा अनूठा है। अनूठा है-लीला के कारण। लीला का मतलब होता है, अकारण खेल है। उसकी मौज है। इसमें कुछ कारण नहीं है। क्योंकि जो भी कारण तुम बताओगे वह बड़ा मूढ़तापूर्ण मालूम पड़ेगा । कोई कहता है, परमात्मा ने इसलिए संसार बनाया कि तुम मुक्त हो सको| यह बात बड़ी मूढ़तापूर्ण है। क्योंकि पहले संसार बनाया तो तुम बंधे। न बनाता तो बंधन ही नहीं था, मोक्ष होने की जरूरत क्या थी? यह तो बड़ी उल्टी बात हुई कि पहले किसी को जंजीरों में बांध दिया और फिर वह पूछने लगा, जंजीरों में क्यों बांधा ? तो उसको जबाब दिया कि तुम्हें मुक्त होने के लिए जंजीरों में ही काहे को बांधा जब मुक्त ही करना था ?
परमात्मा ने संसार को बनाया आदमी को मुक्त करने के लिए? यह तो बात उचित नहीं है