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अष्टावक्र के सूत्र सिद्ध के सूत्र हैं, साधक के नहीं। अष्टावक्र कहते हैं, सीधे सिद्ध ही हो जाओ। यह साधक होने के चक्कर में क्या पड़े हो? साधन में मत उलझो। साधना में मत उलझो। सीधे सिद्ध हो जाओ। क्योंकि परमात्मा तुम्हारे भीतर बैठा है। तुम कहां जप-तप में लगे! किसकी पूजा प्रार्थना कर रहे? जिसकी पूजा-प्रार्थना कर रहे वह तुम्हारे भीतर विराजमान है। तुम कहां खोज रहे हो काबा-कैलाश! तुम कहा जा रहे? जिसे तुम खोज रहे, तुम्हारे भीतर बैठा। तुम भी जरा शांत होकर बैठ जाओ और उसकी स्फुरणा से जीयो। छोड़ दो सब उस पर बेशर्त।
___ हिम्मत की जरूरत है, दुस्साहस की जरूरत है। क्योंकि मन कहेगा ऐसे छोड़े, कहीं कोई हानि हो जाये। ऐसा छोड़ा, कहीं कोई नुकसान हो जाये। ऐसा छोड़ा और कहीं भटक गये! और मजा यह है कि तुम मन के साथ चलकर सिवाय भटके, और क्या हुआ है? भटकने के सिवाय क्या हुआ है? कहां पहुंचे?
मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं, संन्यास तो ले लें लेकिन समर्पण करने में डर लगता है। मैं उनसे पूछता हूं? तुम्हारे पास समर्पण करने को है क्या? क्या है जो तुम समर्पण करोगे? तब वे जरा चौंकते, झिझकते, कंधे बिचकाते। कहते, ऐसे तो कुछ भी नहीं है। तो फिर मैंने कहा, डर क्या है? तुम्हारे पास छोड़ने को क्या है? जो भी तुम्हें लगता है छोड़ने जैसा, वह छुड़ा ही लिया जायेगा। मौत छुडा लेगी। उस वक्त तुमसे यह भी नहीं पूछेगी, समर्पण करते हो? जब मौत सब छुड़ा ही लेगी तो देने का मजा क्यों नहीं ले लेते? जब मौत छीन ही लेगी तो तुम खुद ही क्यों नहीं छोड़ देते? आज नहीं कल मौत छीन लेगी तो तुम एक मौका खोये दे रहे हो। तुम खुद ही परमात्मा को कह दो कि मैं खुद ही अपने को छोड़ता हूं तेरे हाथों में|
और जो आदमी परमात्मा के हाथों में अपने को छोड़ देगा, मौत फिर उसकी नहीं होती। मौत उसी के पास आती है जो परमात्मा को अपने पास नहीं आने देता। इसे समझना।
__ तुम इकट्ठा करते-अपने कर्तृत्व, अपना अहंकार, धन, पद, प्रतिष्ठा। तुम सोचते हो, मैंने यह किया, मैंने यह कमाया, अर्जन किया, यह मेरी प्रतिष्ठा, यह मेरा पद। फिर एक दिन मौत आती है
और सब बिखेर देती है-सब तुम्हारा पद, प्रतिष्ठा। जैसे किसी ने ताश के पत्तों का महल बनाया, हवा का एक झोंका आया और सब गिर गया। जिंदगी भर मेहनत की और मिट्टी में मिल गई। तुम खुद ही मिट्टी में मिल जाओगे तो तुम्हारी मेहनत कहां जायेगी? वह भी मिट्टी में मिल जायेगी।
संन्यासी बड़ा कुशल है। संन्यासी बड़ा समझदार है। वह कहता है जो मौत छीन लेगी वह हम स्वयं दे देते हैं। ऐसे भी छिन जाना है, वैसे भी छिन जाना है। तो देने का मजा क्यों न ले लें? इतना सुख क्यों न उठा लें कि दे दिया।
और तब एक क्रांति घटती है। तुमने छोड़ा कि फिर तुम्हें मिलना शुरू हुआ जीसस ने कहा है, जो बचायेगा वह चूक जायेगा। और जो गंवा देगा वह पा लेगा। जो खोने को राजी है वह पाने का हकदार हो गया।
फिर कहां विधि, कहां त्याग, कहां शमन! नहीं कुछ करना पड़ता। एक बात कर लेने जैसी है