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शास्त्र तो तब तक व्यर्थ नहीं होता, जब तक तुम शास्त्र न बन जाओ। तब तक उसे पढ़ते ही जाना; तब तक उसे फिर-फिर पढ़ना। कौन जाने किस मुहूर्त में...............!
तुम्हारा मन सदा एक-सी अवस्था में नहीं होता। कभी तुम उदास हो, तब शायद ये वचन समझ में आ जाएं। या हो सकता है, कभी तुम बड़े प्रफुल्लित हो, तब ये समझ में आ जाएं। तुम कभी बड़े तरंगित हो, बड़े संगीत से भरे हो, मदमस्ती है-तब समझ में आ जाएं! या हो सकता है, कभी तुम बिलकुल शांत बैठे हो, कोई हलन-चलन नहीं, बड़े स्थिर हो-तब समझ में आ जाएं! कोई कह नहीं सकता, भविष्यवाणी हो नहीं सकती।
लेकिन एक बात तय है कि इन सूत्रों से जीवन का दवार खुल सकता है। तुम पंख फैला सकते हो। जा सकते हो उस अनंत के मार्ग पर, उस परम नीड़ को खोज सकते हो-जिसे बिना खोजे कोई कभी तृप्त नहीं हुआ है!
उड़ जा इस बस्ती से पंछी उड़ जा भोले पंछी।
घर-घर है दुखों का डेरा सूना है यह रैन बसेरा छाया है घनघोर अंधेरा दूर अभी है सुख का सवेरा उड़ जा इस बस्ती से पंछी उड़ जा भोले पंछी!
इस बस्ती के रहने वाले फुरकत का गम सहने वाले दुख-सागर में बहने वाले राम-कहानी कहने वाले उड़ जा इस बस्ती से पंछी उड़ जा भोले पंछी!
जीवन गुजरा रोते - धोते, आहें भरते, जगते -सोते, हाल हुआ है होते-होते फूट रहे हैं खून के सोते उड़ जा इस बस्ती से पंछी उड़ जा भोले पंछी।