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________________ पहले की जैसी सूखी रह जाएंगी या मरुस्थल में पानी गिरेगा और फिर भाप बनकर आकाश में उठ आयेगा, कहीं कोई हरियाली पैदा न होगी या कहीं कोई भूमि स्वीकार कर लेगी, प्यासे कंठ को, भूमि को तृप्ति मिलेगी, उस तृप्ति से हरियाली जगेगी, फूल खिलेंगे, खुशी होगी, उत्सव होगा-क्या फर्क पड़ता है! बादल को बरसना है तो बादल बरस जाता है-पहाड़ों पर भी, मरुस्थलों में भी खेत-खलिहानों में भी, सीमेंट की सड़कों पर भी। सब तरफ बादल बरस जाता है। उसे बरसना है। जो ले ले, ले ले, जो न ले, न ले। मैं इस अर्थ में गंभीर नहीं हूं जिस अर्थ में कृष्णमूर्ति गंभीर हैं। कृष्णमूर्ति अति गंभीर हैं मैं गंभीर नहीं हूं। इसलिए तुम्हारे साथ हंस भी लेता हूं तुम्हें हंसा भी लेता हूं। धर्म मेरे लिए कोई ऐसी बात नहीं है कि उसका बड़ा बोझ बनाया जाए। धर्म मेरे लिए सरल बात है। उसके लिए बुद्धि का बहुत तनाव नहीं चाहिए; थोड़ा निर्दोष हलकापन चाहिए। मजाक-मजाक में तुमसे मैं गंभीर बात कहता हूं। जब मुझे जितनी गंभीर बात कहनी होती है उतनी मजाक में कहता हूं। क्योंकि मजाक में तुम हलके रहोगे, हंसते रहोगे; हंसी में शायद गंभीर बात रास्ता पा जाए, तुम्हारे हृदय तक पहुंच जाए। तुमसे यह बात कहना कि गंभीर बात कह रहा हूं सुनो तुमको और अकड़ा देना है। तुम्हारी गंभीरता के कारण ही न पहुंच पाएगी। तुमने देखा, जो बात तुम्हारे भीतर पहुंचानी हो उसको पहुंचाने के लिए कुछ और उपाय होना चाहिए। तुम ऐसे तल्लीन हो कि तुम अपने पहरे पर नहीं हो। जब तुम पहरे पर नहीं हो तब कोई बात पहुंच जाती है। देखते हो, सिनेमा देखने जाते हो, तब तुम अपने पहरे पर नहीं होते, फिल्म देखने में तल्लीन हो, बीच में विज्ञापन आ जाता है लक्स टायलेट साबुन! वह जिसने बीच में विज्ञापन रख दिया है, वह जानता है कि अभी तम गंभीर नहीं हो, अभी तम इसकी फिक्र भी न करोगे, शायद तम इसे पढो भी नहीं, लेकिन आंख की कोर में छाप पड़ गई. लक्स टायलेट साबुन! अभी तुम गैर-गंभीर थे। अभी तुम तने न बैठे थे। अभी तुम उत्सुक ही न थे इस सब बात में। अभी तो तुम डूबे थे कहीं और। इस इबकी की हालत में यह लक्स टायलेट साबुन चुपचाप भीतर प्रवेश कर गई। पहरेदार नहीं था दवार पर। यह ज्यादा सुगम है तुम्हारे भीतर पहुंचा देना। कभी तुमसे मजाक करता हूं कुछ बात कहता हूं हंसी की तुम हंसने में लगे हो, तभी कोई एक पंक्ति डाल देता हूं जो तुम्हारे भीतर पहुंच जाये। मु हंसी में भूल गये थे उसी बीच तुम्हें थोड़ा-सा देने योग्य दे दिया। मुझसे कई मित्र पूछते हैं कि कभी भी किसी धर्मगुरु ने इस तरह हंसी में बातें नहीं कही हैं। तो मैं कहता हूं तुम देखते हो नहीं कहीं, तो नहीं पहुंची। अब मुझे जरा प्रयोग करके देख लेने दो। गंभीर लोगों ने प्रयोग करके देख लिया है, नहीं पहुंचा है, मुझे जरा गैर-गंभीर प्रयोग करके देख लेने दो। तो तुम देखोगे धर्मगुरुओं की सभा में बूढ़े आदमियों को मेरी सभा में तुम्हें जवान भी मिल जाएंगे, बच्चे भी मिल जाएंगे; उनकी संख्या ज्यादा मिलेगी। क्योंकि जो मैं कह रहा हूं वह उन्हें गंभीर बनाने
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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