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________________ की जबर्दस्ती नहीं है। मेरे साथ जवान भी उत्फुल्ल हो सकता है और बच्चा भी हंस सकता है और बूढ़ा भी उत्सव सम्मिलित हो सकता है। मेरा अपना प्रयोग है। ऐसा मैं नहीं कह रहा . कि कृष्णमूर्ति गलत करते हैं। वे जो करते होंगे, ठीक करते होंगे। वह उनकी जानकारी । वह वे जानें। तुलना नहीं कर रहा हूं । तुलना हो भी नहीं सकती। मैं अपने ढंग से कर रहा वे अपने ढंग से करते हैं। जो गंभीर हों उन्हें उनसे सुन कर समझ लेना चाहिए। जो गंभीर न हों, उन्हें मुझसे सुन कर समझ लेना चाहिए। कहीं तो समझो ! चौथा प्रश्न : क्या जल्दी ही आप गद्य को छोड़ कर पद्य में ही हमें समझायेंगे? और क्या फिर मौन में चले जाएंगे? पद्य निश्चित ही प्रार्थना के ज्यादा करीब है गद्य से । और तुमने अगर मुझे सुना है तो पद्य में ही समझाता रहा हूं गद्य बोला ही कब? पद्य का अर्थ क्या होता है? – जो गाया जा सके; जो गेय है; जो नाचा जा सके। पद्य का अर्थ क्या है? - जिसमें एक संगीत है, एक लयबद्धता है, एक छंद है। तुम अगर मुझे ठीक से सुन रहे हो तो जब मैं गद्य बोलता मालूम पड़ता हूं तब भी पद्य ही बोल रहा हूं। क्योंकि सारी चेष्टा यही है कि तुम गुनगुनासको, गा सको, नाच सकी, तुम्हारे जीवन छंद आ सके। कविता के ढांचे में बांका तभी तुम पहचानोगे ?' बुद्ध ने जो बोला है, वह सभी पद्य है। महावीर ने जो बोला है, वह सभी पद्य है। गद्य तो बोला नहीं जा सकता। प्रार्थना के जगत से पद्य ही निकलता है। नहीं कि मैं यह कह रहा हूं बुद्ध कोई कवि हैं, कवि तो जरा भी नहीं हैं। मात्रा और व्याकरण और भाषा का उन्हें कुछ पता नहीं है। लेकिन तुकबंदी को तुम पद्य मत समझ लेना । तुकबंद तो बहुत हैं। तुकबंदी में पद्य नहीं है। पद्य जरा कुछ बड़ी बात है। सभी कविताओं में पद्य नहीं होता, और सभी गद्य में पद्य नहीं है, ऐसा भी नहीं है। तुम्हें अगर मुझे सुनते समय एक गुनगुनाहट पैदा होती हो मेरी बात तुम्हारे भीतर जा कर मधुर रस बन जाती हो, मेरी बात तुम्हारे भीतर जा कर एक तरंग का रूप लेती हो, तुम डावांडोल हो जाते होओ, तो पद्य हो गया। पद्य परमात्मा को प्रगट करने के लिए ज्यादा सुगम है। इसलिए आश्चर्यजनक नहीं है कि उपनिषद पद्य में हैं, कि वेद पद्य में है, कि कुरान गेय है, कि बाइबिल जैसी पद्यपूर्ण भाषा न कभी पहले लिखी गई है न फिर बाद में लिखी गई । माधुर्य
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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