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________________ जा रही है!' सब बच्चे सम्हलकर बैठ गए। लेकिन बच्चे बच्चे हैं, सम्हलकर बैठ गए तो वे बच्चे सम्हलकर बैठे हैं, आंखें गड़ाते हैं, सिर पर तनाव लाते हैं, सब तरह से दिखलाते हैं कि बड़े गंभीर हो कर देख रहे हैं, मगर उन्हें बोर्ड पर कुछ नहीं दिखाई पड़ रहा है। बाहर एक पक्षी पंख फडफडा रहा है, वह सुनाई पड़ रहा है। बाहर कोई फिल्मी गीत गाता गुजर रहा है, वह सुनाई पड़ रहा है। बैठे हैं आंख गड़ाये बोर्ड पर, कुछ दिखाई नहीं पड़ता। शिक्षक क्या कह रहा है, सुनाई नहीं पड़ता। लेकिन दिखावा कर रहे हैं। वैसा ही दिखावा फिर जीवन भर चलता है। जब कोई कहता है, गंभीर बात, तो तुम गौर से सुनने लगते हो। लेकिन गौर से तुम सुनोगे तुम गौर से सुनते हो, ऐसा दिखलाते हो। नहीं, मैं चाहता हूं कि तुम हलके हो कर सुनो। तुम लीलापूर्वक सुनो। विश्राम में सुनो। से हो कर मत बैठो। यहां हम एक खेल में लीन हैं। यहां कोई बड़ा काम नहीं हो रहा है। तुम ऐसे सुनो जैसे संगीत को सुनते हो। संगीत को तुम गंभीर होकर थोड़े ही सुनते हो लवलीन होकर सुनते हो। गंभीर हो कर संगीत को तुम सुनो तो उसका अर्थ हुआ कि तुमने सुना ही नहीं। लीन होकर तुम डुबकी लगा लेते हो, भूल ही जाते हो। यहां सुनते समय तुम ऐसे सुनो कि तुम्हें तुम्हारी याद भी न रहे। गंभीर में तो तुम्हें याद बनी रहेगी। गंभीर में तो तुम स्वचेतन बने रहोगे। गंभीर में तो तुम डरे रहोगे, कुछ चूक न जाए, कोई एकाध शब्द खो न जाए! हलके हो कर, लीलापूर्वक, विश्रांति में सुनो, तो शायद बात हृदय तक जगदा पहुंच जाए। तुम नहीं सुन पाते तो मैं नाराज नहीं हूं। तुम नहीं सुन पाते यह बिलकुल स्वाभाविक है। कृष्णमूर्ति नाराज हो जाते हैं। उनकी बड़ी आग्रहपूर्वक चेष्टा है कि तुम सुन लो। और कारण भी समझ में आता है-वे चालीस साल से समझाते हैं, कोई समझता नहीं है। एक सीमा होती है। अब उनके जाने के दिन करीब आ गये; अब भी कोई सुनता हुआ नहीं मालूम पड़ता कोई समझता हुआ मालूम नहीं पड़ता। जो दावा करते हैं कि हम समझते हैं, उनके दावे झूठे हैं। एक व्यक्ति ऐसा नहीं दिखाई पड़ता जिस पर कृष्णमूर्ति को लगे कि हां, यह ठीक-ठीक समझ गया है। तो विदा होने के क्षण आने लगे; जीवन भर की चेष्टा व्यर्थ गई मालूम होती है; कोई सुनता-समझता हुआ नहीं मालूम पड़ता। करुणावश ही नाराज होते हैं, किसी क्रोधवश नहीं। लेकिन मैं करुणावश भी नाराज होने को राजी नहीं हूं। मेरी मौज थी, मैंने कह दिया; तुम्हारी मौज थी, तुमने सुन लिया तुम्हारी मौज थी, तुमने नहीं सुना। बात खतम हो गई। नहीं सुनना है तुम्हारी मर्जी। मैं कौन हूं जो नाराज हो और मैं क्यों यह जुम्मा अपने सिर लूं कि तुम्हें सुनाकर ही जाऊंगा। यह मेरी मौज है कि मुझे सुनाना है, कुछ मुझे मिला है, वह मुझे गुनगुनाना है कुछ पाया है उसे बांटना है। यह मेरी तकलीफ है, इससे तुम्हें क्या लेना-देना है! ___ यह बादल की पीड़ा है कि भरा है और बरसना है: अब पृथ्वी उसे स्वीकार करेगी या नहीं, पलक-पांवड़े बिछाकर अंगीकार करेगी या नहीं, चट्टानों पर से जल ऐसे ही बह जाएगा और चट्टानें
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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