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सूरज अस्त होने लगा। सम्राट ने कहा, अब... अब बोलें !
उसने कहा कि इतना ही समझाना है कि अब मैं वापिस नहीं जा रहा । तुम जाते हो कि चलते हो ? सम्राट ने कहा, मैं कैसे चल सकता हूं आपके साथ? महल है, पत्नी है, बच्चे हैं, सारी व्यवस्था.. । मैं कैसे चल सकता हूं?
फकीर ने कहा, लेकिन मैं जा रहा हूं। फर्क समझ में आया?
सम्राट उसके पैर पर गिर पड़ा 1 उसने कहा कि नहीं, मुझे छोड़े मत, मुझसे बड़ी भूल हो गई। उसने कहा, मैं तो अभी फिर घोड़े पर बैठने को तैयार हूं। लेकिन तुम फिर मुश्किल में पड़ जाओगे। ले आ, घोड़ा कहां है?
जब अष्टावक्र कह रहे हैं तो उनका इशारा यही है : अब जहां चाहे, वहां रह ।
अद्य यथा तथा स्थिति: ।
फिर जो हो, जैसा हों - ठीक है, स्वीकार है । तथाता! ऐसे तथाता के भाव में जो रहता है, उसी को बौद्धों ने तथागत कहा है।
बुद्ध का एक नाम है : तथागत। तथागत का अर्थ है : जो हवा की तरह आता, हवा की तरह चला जाता; पूरब कि पश्चिम का कोई भेद नहीं, उत्तर कि दक्षिण का कोई भेद नहीं। रेगिस्तानों में बहे हवा कि मरूद्यानों में बहे हवा - कुछ भेद नहीं। जो ऐसा आया और ऐसा गया ! तथागत! जिसे सब स्वीकार है!
अद्य यथा तथा स्थितिः ।
इस सूत्र को महावाक्य समझो। इस पर खूब - खूब ध्यान करना । इसे धीरे धीरे तुम्हारे अंतरतम में विराजमान कर लेना । यह तुम्हारे मंदिर का जलता हुआ दीया बने तो बहुत प्रसाद फलित होगा, बहुत आशीष बरसेंगे
तुम वही हो सकते हो, जिसको अष्टावक्र ने कहा है. कस्य धन्यस्य अपि ! कोई धन्यभागी ! तुम वही धन्यभागी हो सकते हो। उसका ही मैंने तुम्हारे लिए द्वार खोला है।
हरि ओम तत्सत्!