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ठीक है।
एक फकीर एक सम्राट का मित्र था। सम्राट उस फकीर से बहुत ही प्रभावित था। इतना प्रभावित था कि एक दिन उसने कहा कि प्रभ, मझसे देखा नहीं जाता कि इस वक्ष के नीचे धप, छाया, गर्मी में आप बैठे रहें: राजमहल चलें!
सोचा था सम्राट ने कि जब मैं यह कहूंगा फकीर कहेगा कि 'नहीं-नहीं, नहीं-नहीं, राजमहल और मैं? मैं छोड़ चुका संसार!' ऐसा कहा होता फकीर ने तो सम्राट प्रसन्न हुआ होता। उसके मन में और भी फकीर के प्रति आदर बढ़ा होता। लेकिन फकीर मेरे जैसा रहा होगा। वह उठ कर खड़ा हो गया। उसने कहा, घोड़ा इत्यादि कहां है? सम्राट थोड़ा सकुचाया कि अरे, यह कैसा त्यागी! मगर अब कुछ कह भी न सकता था। ले आया घोड़ा, लेकिन बेमन से लाया। वह तो फकीर चढ़ कर घोड़े पर बैठ गया। उसने कहा कि चलो।
ले आया महल, लेकिन मजा चला गया। क्योंकि मजा तो यही था सम्राट का कि महात्यागी गुरु! यह कैसा त्यागी? अब लेकिन कह भी कुछ नहीं सकता, अपने हाथ से ही फंस गया, बुला लाया। उसको अच्छे से अच्छे कमरे में रखा, जो श्रेष्ठतम, सुंदरतम महल का हिस्सा था। वह वहीं रहने लगा। वह जैसे वृक्ष के नीचे बैठा रहा था, वह सुंदर महल में बैठा रहने लगा।
कुछ दिन बाद सम्राट की बेचैनी बढ़ने लगी। उसने कहा, यह तो बात अजीब हो गई। छह महीने बीत जाने पर उसने कहा कि महाराज एक प्रश्न उठता रहा है.।
फकीर ने कहा, इतनी देर क्यों की? प्रश्न तो उसी दिन उठ गया था जब मैंने कहा, घोड़ा ले आओ!
सम्राट डरा। उसने कहा कि आपको पता है?
'पता कैसे नहीं होगा? क्योंकि तत्क्षण तुम्हारा चेहरा बदल गया था। उसी क्षण मेरा तुमसे संबंध छूट गया, जब मैंने घोड़े से संबंध जोड़ा। उसी क्षण मैं कोई त्यागी नहीं रहा तुम्हारे लिए। बोलो, छह महीने क्यों रुके? इतनी देर क्यों तकलीफ सही? मुझे पता है कि तुम बेचैन हो रहे। क्या है?'
कहा, 'इतना-सा पूछना है कि अब तो मुझमें और आपमें कुछ भी अंतर नहीं है। अब तो ठीक आप भी मेरे जैसे हैं-महल में रहते हैं, सुख-सुविधा, नौकर-चाकर, अच्छा खाना-पीना! भेद तो तब था, जब आप बैठे थे वृक्ष के नीचे-आप फकीर थे, त्यागी थे, महात्मा थे, मैं राजा था, भोगी था। अब क्या भेद है?'
उस फकीर ने कहा, जानना चाहते हो भेद, तो गांव के बाहर चलो। राजा ने कहा, ठीक। दोनों गांव के बाहर गए। फकीर ने कहा, थोड़ी दूर और चलें।
दोपहर हो गई। सम्राट ने कहा, अब बता भी दें, बताना है तो कहीं भी बता दें, अब आधा जंगल आ गया यह।
नहीं, उसने कहा कि थोड़ी दूर और। सूरज अस्त होते ही समझा दूंगा।