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नहीं। लेकिन हमारे अहंकार के कारण हम यह बात मानने को राजी नहीं हो पाते कि हमारे बिना भी महल रह जाएगा। असंभव!
वर्नर इरहार्ड एक छोटी-सी कहानी कहते हैं, कि अमरीका के पहाड़ों में बसे एक कबीले में एक गुरु था। वह रोज सांझ को उसके पास एक जादुई कंबल था-वह जोर से कंबल को उठा कर घुमाता और तत्क्षण आकाश में तारे निकलने शुरू हो जाते। ऐसा सदियों से होता रहा था। और वह कबीला मानता था कि गुरु के कंबल में कुछ जादू है। क्योंकि जब भी गुरु घुमाता है कंबल को फिर तुम जाओ बाहर और देखना शुरू करो, शीघ्र ही आकाश में तारे दिखाई पड़ने लगते हैं। उस गुरु से लोग बहुत डरते थे क्योंकि खतरनाक मामला है, किसी दिन कंबल न घुमाए, फेंक दे कंबल, कह दे कि नहीं निकालते तारे-तो क्या होगा?
फिर ऐसा हुआ कि कोई दूसरे कबीले का चोर, गुरु का कंबल एक दफे चुरा कर ले गया। अब गुरु बड़ी मुश्किल में पड़े। सबसे बड़ी मुश्किल यह थी.ऐसे तो गुरु को भी यही भरोसा था, उनके कंबल घुमाने से तारे निकलते हैं. सारा कबीला उदास है कि अब क्या करें? आज क्या होगा? सब अस्तव्यस्त हो गया। लेकिन कुछ अस्तव्यस्त न हुआ। तारे निकल आए ठीक समय पर। कहते हैं गुरु ने आत्महत्या कर ली। फिर कोई रहने का कोई उपाय नहीं रहा। लोग हंसने लगे। उन्होंने कहा, हम भी बड़ी नासमझी में पड़े थे। तारे निकलते ही थे। कंबल से तारों के निकलने का कोई संबंध न था। यह तो कंबल ठीक वक्त पर घुमाते थे। सूरज ढल गया, ठीक समय तय था, तब यह कंबल घुमा देते थे। कंबल के घुमाने और तारों के निकलने में कोई कार्य –कारण का संबंध न था।। कंबल घुमाओ न घुमाओ, तारे निकलते ही हैं।
तुम करो न करो, जो होता है होता है। तुम्हारे किए कुछ भी नहीं है। जिस दिन यह बात तुम्हें समझ में आ जाएगी, जिस दिन तुम्हारा कंबल चोरी चला जाएगा.. और वही हुआ, अजित सरस्वती का कंबल चोरी जा रहा है, खींच रहा हूं धीरे- धीरे, काफी तो निकल गया है, थोड़ा-सा पकड़े रह गए हैं वे हाथ में, वह भी जिस दिन छूट जाएगा, उसी दिन यह सपना बंद हो जाएगा। उस दिन तुम अचानक पाओगे : हम व्यर्थ ही परेशान हो रहे थे; जीवन चल ही रहा है, सुंदरतम ढंग से चल रहा है। इससे
और ज्यादा गौरवशाली ढंग हो नहीं सकता। बड़ी गरिमा और प्रसाद से चल रहा है। हम व्यर्थ ही इसमें शोरगुल मचा रहे थे। हम व्यर्थ ही चिल्ला रहे थे, चीख रहे थे।
हम चीखते-चिल्लाते हैं, क्योंकि हमारा अहंकार यह मानने को राजी नहीं हो पाता कि हमारे बिना भी दुनिया चलती रहेगी। हमारे बिना, और दुनिया चलती रहेगी त्र: असंभव! हम गए कि महल का छप्पर गिरा।
नहीं, महल का छप्पर तुमसे सम्हला नहीं है। न तुम्हारे कंबल के घुमाने से जीवन चल रहा है। इस भ्रांति को छोड़ देने का नाम ही धर्म है। तुम ईश्वर को मानो या न मानो, धार्मिक होने से ईश्वर को मानने न मानने का कुछ प्रयोजन नहीं। तुम इसकी भ्रांति छोड़ दो कि मेरे चलाए सब चल रहा है-तुम धार्मिक हो गए; तुमने जान ही लिया प्रभु को परमात्मा अवतरित हो ही गया; तुम उसके