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आमने - सामने खड़े हो गए। फिर साक्षात में क्षण भर देर नहीं होती।
तीसरा प्रश्न :
मैंने देश के अनेक आश्रमों में देखा है कि वहां के अंतेवासियो के लिए कुछ न कुछ अनिवार्य साधना निश्चित है, जिसका अभ्यास उन्हें नियमित करना पड़ता है। परंतु आश्चर्य है कि यहां ऐसा कोई साधन, अनुशासन नहीं दिखता। कृपया इस विशिष्टता पर कछ प्रकाश डालने की अनकंपा करें
म यहां मौजूद हूं मैं तुम्हारा अनुशासन हूं। जब मैं न रहूं तब तुम्हें नियम्यवस्था, अनुशासन की जरूरत पड़ेगी। शास्ता हो, तो शासन की कोई जरूरत नहीं। जब शास्ता
न हो तो शासन परिपूरक है। मुर्दा आश्रमों में तुमने जरूर यह देखा होगा।
यह एक जिंदा आश्रम है। अभी यह जिंदा है। मरेगा कभी-और तब तुम निश्चित मानो. नियम भी होंगे, अनुशासन भी होगा। मेरे जाते ही नियम होंगे, अनुशासन होंगे, क्योंकि तुम बिना नियमअनुशासन के रह नहीं सकते-तुम ऐसे गुलाम हो मैं भी लाख उपाय करता हूं तब भी तुम बास्बार पूछने लगते हो : कुछ नियम, कुछ अनुशासन! मेरी सारी चेष्टा तुम्हें समझाने की यह है कि तुम्हारे हाथ में कुछ भी नहीं है। क्या अनुशासन? क्या नियम?
तुम पांच बजे सुबह उठ आओगे तो ज्ञान को उपलब्ध हो जाओगे? किस मूढ़ता में पड़े हो? पांच बजे उठो कि चार बजे उठो कि तीन बजे उठो, तुम मूढ़ के मूढ़ ही रहोगे। मूढ़ पांच बजे उठे कि तीन बजे, कोई फर्क नहीं पड़ता। घड़ी से तुम्हारे आत्मज्ञान का कोई संबंध नहीं है। मगर मूढ़ों को रस मिलता है। उनको कम से कम कुछ सहारा मिल जाता है। मैं उनको कोई सहारा नहीं देता। उनको अगर मैं कह दूं ब्रह्ममुहूर्त में उठो तो ब्रह्मज्ञान होगा..। हालांकि उन्हें तकलीफ होगी उठने में पांच बजे, अड़चन पाएंगे, लेकिन अड़चन में मजा आएगा; क्योंकि अड़चन में लगेगा कार ऊपर की तरफ चढ़ रही है। उनको मैं कह दूं रोज सुबह शीर्षासन लगा कर खड़े हो जाओ.। बुद्ध मालूम पड़ेंगे शीर्षासन करते हुए। कौन आदमी सुंदर मालूम पड़ता है सिर के बल खड़ा लेकिन तकलीफ भी होगी, गर्दन भी दुखेगी लेकिन फिर भी उनको रस आएगा। वे कहेंगे, चलो कुछ कर तो रहे, मोक्ष की तरफ बढ़ तो रहे! __मैं तुमसे कह रहा हूं तुम मुक्त हो। ही तुम्हें अगर आनंद आता हो पांच बजे उठने में, बराबर उठो, लेकिन पाच बजे उठने से मोक्ष मिलेगा, इस भ्रांति में मत पड़ना। तुम्हें अगर सिर के बल खड़े