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पर कभी नहीं होता। ' |
यह बात ठीक है। है भी नहीं किसी का पैर ऐक्सीलरेटर पर। ऐक्सीलरेटर पर पैर तो परमात्मा का है।
तुम्हारी हालत तो वैसी है जैसे कोई छोटा बच्चा बाप से कहता है, कार में बैठा कर मुझे चलाने दो। और बाप ऐक्सीलरेटर पर पैर रखता है, ब्रेक पर पैर रखता है, स्टीयरिंग भी पकड़े रहता है और लड़के को संभलवा देता है स्टीयरिंग और लड़का बड़ा अकड़ से, बड़ा मजे से.. हालांकि वह जो घुमा रहा है वह भी बाप ही घुमा रहा है.. और बड़ा प्रसन्न होता है कि गाड़ी चला रहा है! उस वक्त उसका चेहरा देखो, उसकी प्रफुल्लता देखो! वह चारों तरफ देखता है कि लोग देख लें कि गाड़ी कौन चला रहा है।
यह जीवन की जो गाड़ी है, इस पर ऐक्सीलरेटर पर पैर तुम्हारा नहीं है, कभी नहीं है; न स्टीयरिंग तुम्हारे हाथ में है। तुम छोटे बच्चे की भांति हो जो भांति में पड़ गया है। गाड़ी अपने आप चलती है, गाड़ी अपने आप ही चल रही है। तुम्हारे चलाने की जरा भी जरूरत नहीं। तुम नाहक परेशान हो रहे हो, पसीने-पसीने हुए जा रहे हो। यह बच्चा नाहक परेशान हो रहा है। यह सोच रहा है, गाड़ी यह चला रहा है, अगर न चलाए तो मुश्किल हो जाएगी। बड़ा हॉर्न बजा रहा है। यह सोच रहा है इसके बिना तो सब अस्तव्यस्त हो जाएगा यह सारा, अभी दुर्घटना हो जाएगी, कहीं कोई टक्कर हो जाएगी। यह पसीने-पसीने हुए जा रहा है। इसे पता नहीं कि तेरे न हॉर्न बजाने से कुछ होना है न तू गाड़ी को संभाल रहा है। गाड़ी कोई और संभाले हुए है। किन्हीं विराट हाथों में सब है। हम सिर्फ साक्षी हो जाएं। कर्ता हम नहीं हैं। हम सिर्फ साक्षी हो जाएं, तो बड़ी हंसी आएगी। जीवन की इस विडंबना पर बड़ी हंसी आएगी कि खुब मजाक रही।
'गाड़ी अपने- आप चलती है। मैं रोकने की कोशिश करता हूं और नियंत्रण नहीं रख पाता हूं।
'नियंत्रण छोड़ देना ही मेरी देशना है। मैं तुमसे कहता हूं. छोडो सब नियंत्रण! तुम्हारे हाथ बड़े छोटे हैं, इनसे नियंत्रण हो भी न सकेगा। तुम छोड़ो प्रभु पर। करने दो उसे नियंत्रण। तुम नहीं थे तब भी यह जगत चल रहा था। फूल खिलते थे, चांद निकलते थे, वर्षा आती, धूप आती! तुम नहीं थे, तब भी सब चल रहा था। चांद-तारे घूमते, सूरज निकलता! तुम नहीं रहोगे, तब भी सब चलता रहेगा। इतना विराट चल रहा है। तुम नाहक इसमें परेशान हो रहे हो।
मैंने सुना है, एक छिपकली राजा के महल में रहती थी। स्वभावत: राजा के महल में रहती थी तो वह अपने को सम्राट से कम नहीं मानती थी। कोई साधारण छिपकली न थी। गांव की और छिपकलियों में उसका बड़ा समादर था। उसको बड़े निमंत्रण भी मिलते थे कि आज इस जगह उदघाटन कर दो, कि नई छिपकली ने घर बसाया, कि किसी छिपकली का विवाह हो रहा है, कि किसी छिपकली को बच्चा पैदा हुआ लेकिन वह कभी जाती नहीं, वह मुस्कुरा कर टाल देती। वह कहती, किसी और को ले जाओ, क्योंकि मैं अगर चली गई तो इस महल के छप्पर को कौन सम्हालेगा? यह महल गिर जाएगा। छिपकली सोचती है सम्हाले है छप्पर को! कोई सम्हाले नहीं। हमारे सम्हाले कुछ सम्हला