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भी यही कह रहे हैं। सारा उपाय यह चलता है कि किसी पर हटा दो जिम्मेवारी । पुराने धर्म भी यही कहते थे। अगर तुम पूरी मनुष्य जाति का इतिहास देखो तो अष्टावक्र या जनक जैसी बात को कहने वाले इने-गिने, उंगलियों पर गिने जा सकें, इतने लोग मिलेंगे, बाकी सब लोग तो कुछ और कह रहे हैं।
ईसाइयत कहती है कि परमात्मा ने अदम को और हब्बा को स्वर्ग के बगीचे से बाहर खदेड़ दिया, क्योंकि उन्होंने आज्ञा का उल्लंघन किया था। जब परमात्मा आया और उसने अदम से पूछा कि 'तूने क्यों खाया इस वृक्ष का फल ? तुझे मना किया गया था। उसने कहा, 'मैं क्या करूं? यह हब्बा, इसने मुझे फुसलाया। ' देखते हैं, शुरू हो गई कहानी! उसने अपनी जिम्मेवारी हब्बा पर फेंक दी। यह इस पत्नी को देखिए, अब मैं पति ही हूं, और पति की तो आप जानते ही हैं हालतें! अब पत्नी कहे और पति न माने तो झंझट । अब अगर पति को पत्नी और परमात्मा में चुनना हो तो इसको ही चुनना पड़ेगा । माना, आपकी आशा मुझे मालूम है, मगर इसकी आशा भी तो देखिए ! यह फल ले आई और कहने लगी चखो, तो मुझे खाना पड़ा।
तो परमात्मा ने हब्बा से पूछा कि तुझे भी पता था, फिर तू क्यों फल लाई? उसने कहा, मैं क्या करूं? वह शैतान सांप बन कर मुझसे कहने लगा। सांप कहने लगा मुझसे कि खाओ इसका फल । उसने मुझे काफी उत्तेजित किया। उसने कहा, इस फल को खाने से तुम मनुष्य नहीं, परमात्म-रूप हो जाओगे। परमात्मा स्वयं इसका फल खाता है और तुम्हें कहता है, मत खाओ। जरा धोखा तो देखो ! यह ज्ञान का फल, इसी को खाकर परमात्मा ज्ञानी है और तुमको अज्ञानी रखना चाहता है। तो साधारण स्त्री हूं फुसला लिया उसने।
स्त्री का सदा से यही कहना रहा है कि दूसरों ने फुसला लिया। हर पति जानता है कि पत्नी कहती है कि हम तुम्हारे पीछे न पड़े थे। तुम्हीं हमारे पीछे पड़े थे, तुम्हीं ने फुसला लिया और यह झंझट खड़ी कर दी।
....... मैं क्या करूं, सांप ने
फुसला लिया!
अगर सांप भी बोल सकता होता, तो किसी और पर टाल देता। हो सकता था, वृक्ष पर ही टाल देता कि यह वृक्ष ही विज्ञापन करता है कि जो मेरे फल को खाएगा वह ज्ञान को उपलब्ध हो जाएगा। लेकिन सांप बोल नहीं सकता था, उसने शायद सुना भी न होगा कि मामला क्या चल रहा है। आदमीआदमी के बीच की बात थी; वह चुपचाप रहा, इसलिए कहानी वहा पूरी हो गई, नहीं तो कहानी पूरी हो नहीं सकती थी।
मार्क्स कहता है, समाज जिम्मेवार है। अगर तुम बुरे हो तो इसलिए बुरे हो क्योंकि समाज बुरा है। यह कुछ फर्क न हुआ । यह वही पुरानी चाल है नाम बदल गया ।
हिंदू कहते हैं, विधि, भाग्य, विधाता ने ऐसा लिख दिया, तुम क्या करोगे? छोड़ो किसी पर! विधाता लिख गया है! जब पैदा हुए थे तो माथे पर लिख गया कि ऐसा- ऐसा होगा, तुम क्रोधी बनोगे, कामी बनोगे, कि साधु, कि संत, कि क्या तुम्हारी जिंदगी में होगा - सब लिखा हुआ है। सब तो पहले