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से हम शांत हो जाएंगे? और शांति उसी घटना की स्थिति है, जब जो है स्वीकार है। फिर कैसे अशांत होओगे बताओ मुझे? फिर क्या उपाय है अशांत होने का ? जो है, जैसा है - स्वीकार है । फिर तुम्हें कौन अशांत कर सकेगा, कैसे अशांत कर सकेगा? फिर तो अगर अशांति भी होगी तो स्वीकार है। फिर तो दुख भी आएगा तो स्वीकार है। फिर तो मौत भी आएगी तो स्वीकार है। तुमने चुनाव छोड़ दिया, तुमने संकल्प छोड़ दिया, तुम समर्पित हो गये। तुमने कहा, अब जो है वही है। और उसी दिन वह महाक्रांति घटती है जिसका इस सूत्र में इंगित है।
मयि अनंत महाम्भोधौ विश्वपोत इतस्ततः ।
'मुझ अंतहीन महासमुद्र में विश्व - रूपी नाव अपनी ही प्रकृत वायु से इधर-उधर डोलती है।
'भ्रमति स्वान्तवातेन न मम अस्ति असहिष्णुता
अब मैं जान गया कि यह स्वभाव ही है। कोई मेरे विपरीत मेरे पीछे नहीं पड़ा है। कोई मेरा शत्रु नहीं है जो मुझे अशांत कर रहा है। ये मेरे ही स्वभाव की तरंगें हैं। यह मैं ही हूं। यह मेरे होने का ढंग है कि कभी इसमें लहरें उठती हैं, कभी लहरें नहीं उठतीं; कभी सब शांत हो जाता है, कभी सब अशांत हो जाता है। यह मैं ही हूं और यह मेरा स्वभाव है।
एक मित्र ने पूछा कि आप कहते हैं, आत्मा जब मुक्त हो जाएगी तब परिपूर्ण आनंद में होगी, स्वतंत्र होगी, लेकिन क्या फिर आत्मा में वासना नहीं उठ सकती? और अगर वासना फिर नहीं उठ सकती तो पहले ही वासना क्यों उठी? क्योंकि आत्मा तो स्वभाव से ही स्वतंत्र है, शुद्ध - बुद्ध है। पहले से ही वासना क्यों उठी?
उन मित्र को... उनका प्रश्न बिलकुल स्वाभाविक है, तर्कयुक्त है । उनको यह खयाल में नहीं आ रहा कि वासना का उठना भी आत्मा की स्वतंत्रता का हिस्सा है। यह किसी ने उठा नहीं दी तुममें। यह तुम्हारा स्वभाव है। वासना भी उठती है तुम्हारे स्वभाव में और मोक्ष भी उठता है तुम्हारे स्वभाव में। जब वासना उठती है तो तुम संसारी हो जाते हो। जब वासना उठती है तो तुम देह में प्रवेश कर जाते हो। जब वासना से थक जाते हो तो मुक्त हो जाते हो। मगर दोनों तुम्हारे ही स्वभाव हैं। ऐसा नहीं है कि वासना कोई शैतान तुम में डाल रहा है और मोक्ष तुम लाओगे । वासना भी तुम्हारी मोक्ष भी तुम्हारा। और जिसने ऐसा समझ लिया, उसे एक बात खयाल में आ जाएगी कि अगर आत्मा में वासना न उठ सके तो वह आत्मा मुक्त ही नहीं। क्योंकि मुक्ति ऐसी क्या मुक्ति हुई अगर तुम्हें स्वर्ग जाने की ही मुक्ति हो और नरक जाने के लिए दरवाजे ही बंद हों और जा ही न सको, तो यह मुक्त कोई पूरी मुक्ति न हुई। यह स्वर्ग भी बेमजा हो जाएगा। इसका भी स्वाद खो जाएगा। मुंह कड़वाहट से भर जाएगा स्वर्ग में जा कर ।
स्वर्ग का मजा ही यह है कि नरक जाने की भी सुविधा है। सुख का मजा यही है कि दुखी होने की सुविधा है। विपरीत के कारण ही जीवन में सारा रंग सारा संगीत है। अगर विपरीत न हो तो सब संगीत खो जाए। वीणावादक अंगुलियों से तार को छेडता है तो संगीत है। अंगुलियों और तार में जो संघर्ष होता है वही संगीत है। संघर्ष बंद हो जाए, संगीत शून्य हो जाए, संगीत खो जाए ।