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धुन आने लगी, सुख की सुवास आने लगी। क्योंकि दुख का दूर होना, यानी सुख का पास आना। धीरे- धीरे तुम पाओगे, दुख इतने दूर पहुंच गया कि अब समझ में भी नहीं आता कि है या नहीं दूर तारों पर पहुंच गया और सुख की वीणा भीतर बजने लगी। फिर एक ऐसी घड़ी आती है, जब दुख चला ही गया। जब दुख चला जाता है, तो जो शेष रह जाता है, वही सुख है।
सुख तुम्हारा स्वभाव है। सुख दुख के विपरीत नहीं है। तुम्हें सुख पाने के लिए दुख से लड़ना नहीं है। दुख का अभाव है सुख। दुख की अनुपस्थिति है सुख। दुख को तुम देख लो भर आंख-और दुख गया। यही करो तुम क्रोध के साथ। यही करो तुम लोभ के साथ। यही करो तुम चिंता के साथ। और सौ में से नब्बे मौकों पर तो शरीर के दुख के साथ भी तुम यही कर सकते हो।
अभी पश्चिम में बड़े मनोवैज्ञानिक प्रयोग चल रहे हैं, जिन्होंने इस बात की सच्चाई की गवाही दी है। सौ में निन्यानबे मौकों पर सिरदर्द केवल साक्षी- भाव से देखने से चला जाता है -निन्यानबे मौके पर। एक ही मौका है जब कि शायद न जाए, क्योंकि उसका कारण शारीरिक हो, अन्यथा उसके कारण मानसिक होते हैं।
तुम्हें अब जब दुबारा सिरदर्द हो तो जल्दी से सेरिडॉन मत ले लेना, एस्थो मत ले लेना। अब की बार जब दुख हो तो ध्यान का प्रयोग करना, तुम चकित होओगे। यह तो प्रयोगात्मक है। यह तो अब वैज्ञानिक रूप से सिद्ध है, धार्मिक रूप से तो सदियों से सिद्ध रहा है, अब वैज्ञानिक रूप से सिद्ध है। जब तुम्हारे सिर में दर्द हो, तुम बैठ जाना। उस दर्द को खोजने की कोशिश करना कहां है ठीकठीक? ताकि तुम अंगुली रख सको, कहां है। पूरे सिर में मालूम होता है तो खोजने की कोशिश करना : कहां है ठीक-ठीक? तुम चकित होओगे : जैसे तुम खोजते हो, दर्द सिकुड़ने लगता है, उसकी जगह छोटी होने लगती है। पहले लगता था पूरे सिर में है, अब लगता है एक थोड़ी-सी जगह में है। और खोजते जाना, और खोजते जाना, और खोजते जाना, देखते जाना भीतर-और जरा भी चेष्टा नहीं करना कि दुख न हो, दर्द न हो; है तो है, स्वीकार कर लेना। और तुम अचानक पाओगे, एक ऐसी घड़ी आएगी कि दर्द ऐसा रह जाएगा जैसे कि कोई सुई चुभो रहा है। इतने से, छोटे-से बिंदु पर! और तब तुम हैरान होओगे कि कभी-कभी दर्द खो जाएगा। कभी-कभी लौट आएगा। कभी-कभी फिर खो जाएगा। कभी-कभी फिर लौट आएगा। और तब तुम्हें एक बात साफ हो जाएगी कि जब भी तुम्हारा साक्षी भाव सधेगा, दर्द खो जाएगा। और जब भी साक्षी- भाव से तुम विचलित हो जाओगे, दर्द वापिस लौट आएगा। और अगर साक्षी- भाव ठीक सध गया तो दर्द बिलकुल चला जाएगा।
इसे तुम जरा प्रयोग करके देखो। मानसिक दुख तो निश्चित रूप से चले जाते हैं, शायद शारीरिक दुख न जाएं। अब किसी ने अगर सिर में पत्थर मार दिया हो तो उसके लिए मैं नहीं कह रहा हूं। इसलिए सौ में एक मौका छोड़ा है कि तुमने अपना सिर दीवाल से टकरा लिया हो, फिर दर्द हो रहा हो, तो वह दर्द शारीरिक है। उसका मन से कुछ लेना-देना नहीं। लेकिन अगर किसी ने सिर में पत्थर भी मार दिया हो तो भी अगर तुम साक्षी भाव से देखोगे तो दर्द मिटेगा तो नहीं, लेकिन एक बात साफ हो जाएगी कि तुम दर्द नहीं हो। तुम दर्द से भिन्न हो। दर्द रहेगा। अगर मानसिक दर्द है तो