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किया, बहुत शांत भी हो गया। एक दिन ध्यान करते-करते उसे खयाल आया कि बुद्ध ने असली बातों के तो जवाब ही नहीं दिए। वह आया उनके पास भागा हुआ । उसने कहा कि सुनिए, न तो आपने कभी बताया है कि ईश्वर है या नहीं, न आपने कभी यह बताया है कि स्वर्ग है या नहीं, न आपने कभी यह बताया है कि आत्मा मर कर कहा जाती है, पुनर्जन्म होता कि नहीं? इन बातों के उत्तर दें।
बुद्ध ने कहा, सुनो, अगर मैं इन बातों के उत्तर दूं तो तुम्हारे तक उत्तर पहुंचने के पहले मैं मर जाऊंगा और तुम्हारे समझने के पहले तुम मर जाओगे। इन बातों के उत्तर व्यर्थ हैं। ये तो ऐसे हैं जैसे किसी आदमी को तीर लग गया हो और वह मरने के करीब पड़ा हो और मैं उससे कहूं किला मैं तेरा तीर खींच लूं और वह कहे, रुको, पहले मेरी बातों के उत्तर दो. 'यह तीर किस दिशा से आया? यह किसने चलाया ? चलाने वाला मित्र था कि दुश्मन था ? भूल से लगा कि जान कर मारा गया? तीर जहर-बुझा है या साधारण है? पहले इन बातों के उत्तर दो!' तो मैं उस आदमी को कहूंगा, फिर तू मरेगा। मुझे पहले तीर खींच लेने दे, फिर तू फिक्र करना इन प्रश्नों की। अभी तो बच जा । तो बुद्ध ने उस भिक्षु को कहा कि मैंने तुम्हें बताया है कि जीवन में दुख है और मैंने तुम्हें बताया है कि जीवन के दुख से मुक्त होने का मार्ग है। मेरी देशना पूरी हो गई। इससे ज्यादा मुझे तुम्हें कुछ नहीं बताना । तुम्हारा दुख मिट जाए फिर तुम जानो, खोज लेना ।
यह बड़े सोचने जैसी बात है। बुद्ध ने ऐसा क्यों कहा? क्या बुद्ध ईश्वर के संबंध में उत्तर नहीं देना चाहते थे? बुद्ध जानते हैं कि तुम ईश्वर को भी दुख के कारण ही खोज रहे हो। जिस दिन दुख मिट जाएगा, तुम ईश्वर इत्यादि की बकवास बंद कर दोगे । ईश्वर भी तुम्हारी दुख की ही आकांक्षा है कि किसी तरह दुख मिट जाए । संसार में नहीं मिटा तो स्वर्ग में मिट जाए। यहां तो मांग-मांग कर हार गये, यहां तो न्याय मिलता नहीं, परमात्मा के घर तो मिलेगा!
लोग कहते हैं, वहां देर है अंधेर नहीं। कहते हैं, चाहे देर कितनी हो जाये, जन्म के बाद मिले, जन्मों के बाद मिले, मरने के बाद; लेकिन न्याय तो मिलेगा। अंधेर नहीं है।
लेकिन तुम्हारी आकांक्षाएं अपनी जगह खड़ी हैं। तुम कहते हो, कभी तो भरी जायेंगी! देर है, अंधेर नहीं।
बुद्ध ने कहा, मैंने दो ही बातें सिखाईं : दुख है, इसके प्रति जागो और दुख से पार होने का उपाय है-साक्षी हो जाओ! बस इससे ज्यादा मुझे कुछ कहना नहीं, मेरी देशना पूरी हो गई। तुम ये दो काम कर लो, बाकी तुम खोज लेना ।
और बुद्ध
बिलकुल ठीक कहा । जिस आदमी का दुख मिट गया वह बिलकुल चिंता नहीं कर कि स्वर्ग है या नहीं। स्वर्ग तो हो ही गया, जिस आदमी का दुख मिट गया। और जिस आदमी दुख मिट गया वह नहीं पूछता कि ईश्वर है या नहीं? जिस आदमी का दुख मिट गया, वह स्वयं ईश्वर हो गया। अब और बचा क्या?
जिसने पूछा है प्रश्न, उसे बहुत कुछ समझने की जरूरत है। जिंदगी को आकांक्षाओं के पर्दे