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की लाशों से पटा है। हर इंच पर दस लाशें पटी हैं। तुम जहां बैठे हो, वहा दस मुर्दे नीचे गड़े हैं। तुम भी धीरे से ग्यारहवें हो जाओगे, उन्हीं में सरक जाओगे ।
फिर इस सब दौड़-धूप का इस आकांक्षा- अभिलाषा का इस महत्वाकांक्षा का क्या अर्थ है ? क्या सार है? इस सत्य को देख कर जो जागता, फिर वह ऐसा नहीं कहता कि रात कटती नहीं, दिन गुजरता नहीं। ' फिर वह ऐसा नहीं कहता कि 'जख्म ऐसा दिया जो भरता नहीं। आंख वीरान है, दिल परेशान है, गम का सामान है। 'यह तो सब आशा - अपेक्षा की ही छायाएं हैं। इनसे कोई धार्मिक नहीं होता। और इनके कारण जो आदमी धार्मिक हो जाता है, वह धर्म के नाम पर संसार की ही मांग जारी रखता है। वह मंदिर में भी जाएगा तो वही मांगेगा जो संसार में नहीं मिला है! उसका स्वर्ग उन्हीं चीजों की पूर्ति होगी जो संसार में नहीं मिल पायी हैं उनकी आकांक्षा वहां पूरी कर लेगा। इसलिए तो स्वर्ग में हमने कल्पवृक्ष लगा रखे हैं; उनके नीचे बैठ गए, सब पूरा हो जाता है।
मैंने सुना, एक आदमी भूले- भटके कल्पवृक्ष के नीचे पहुंच गया। उसे पता नहीं था कि यह कल्पवृक्ष है। वह उसके नीचे बैठा, बड़ा थका था। उसने कहा, 'बड़ा थका- मादा हूं। ऐसे में कहीं कोई भोजन देता। मगर कहीं कोई दिखाई पड़ता ही नहीं । ' ऐसा उसका सोचना ही था कि अचानक भोजन के थाल प्रगट हुए। वह इतना भूखा था कि उसने ध्यान भी न दिया कि कहां से आ रहे हैं? क्या हो रहा है? भूखा आदमी मर रहा था। उसने भोजन कर लिया। भोजन करके उसने सोचा, बड़ी अजीब बात है। मगर दुनिया है, यहां सब होता है, हर चीज होती है। इस वक्त तो अब चिंता करने का समय भी नहीं, पेट खूब भर गया है। उसने डट कर खा लिया है। जरूरत से ज्यादा खा लिया, तो नींद आ रही है। तो वह सोचने लगा कि एक बिस्तर होता तो मजे से सो जाते। सोचना था कि एक बिस्तर लग गया। जरा सा शक तो उठा मगर उसने सोचा, ' अभी कोई समय है! अभी तो सो लो, देखेंगे। अभी तो बहुत जिंदगी पड़ी है, जल्दी क्या है, सोच लेंगे। ' सो भी गया। जब उठा सो कर, अब जरा निश्चित था। अब उसने देखा चारों तरफ कि मामला हो क्या रहा है। यहां कोई भूत-प्रेत तो नहीं हैं ! भूत-प्रेत खड़े हो गए, क्योंकि वह तो कल्पवृक्ष था। उसने कहा, मारे गए ! तो मारे गए ! कि भूत-प्रेत झपटे उन पर वे मारे गए !
कल्पवृक्ष की कल्पना कर रखी है स्वर्ग में। जो-जो यहां नहीं है, वहा सिर्फ कामना से मिलेगा। तुमने देखा, आदमी की कामना कैसी है! यहां तो श्रम करना पड़ता है; कामना से ही नहीं मिलता। श्रम करो, तब भी जरूरी नहीं कि मिले। कहां मिलता ? श्रम करके भी कहां मिलता? तो इससे ठीक विपरीत अवस्था स्वर्ग में है। वहां तुमने सोचा, तुमने सोचा नहीं कि मिला नहीं । तत्क्षण ! उसी क्षण ! समय का जरा भी अंतराल नहीं होता। लेकिन ध्यान रखना, तुम वहा भी सुखी न हो सकोगे।
देखा, इस आदमी की क्या हालत हुई जहां सब मिल जाएगा वहां भी तुम सुखी न हो सकोगे । क्योंकि सुखी तुम तब तक हो ही नहीं सकते जब तक तुम सुख में भरोसा करते हो ।
सुख से जागो! सुख से जागने से ही दुख विसर्जित हो जाता है।
बुद्ध
के पास एक आदमी आया- उनका भिक्षु था, उनका संन्यासी था। उसने बहुत दिन ध्यान