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पड़ोगे।
अगर कोई तुम्हें फिर से कह दे कि दौड़ जाओ, अभी मिल जाएगा, बस पास ही है-तुम फिर चल पड़ोगे; फिर आशा का दीया जलने लगेगा।
यह तुम्हारी हार है, समझ नहीं । यह तुम्हारी पराजय है, लेकिन बोध नहीं। और पराजय को बोध मत समझ लेना । पराजित आदमी बैठ जाता है थक कर; लेकिन गहरे में तो अभी भी सोचता रहता है : मिल जाता शायद कुछ और उपाय कर लेता! शायद कोई और ढंग होगा खोजने का ! मैंने शायद गलत ढंग से खोजा, ठीक न खोजा। या मैंने पूरी ताकत न लगाई खोजने में!
तुम कितनी ही ताकत लगाओ, संसार में हार सुनिश्चित है। संसार में जीत होती नहीं । मैंने सुना है, एक महिला एक दुकान पर बच्चों के खिलौने खरीद रही है। एक खिलौने को वह जमाने की कोशिश कर रही है, जो टुकड़े-टुकड़े में है और जमाया जाता है। उसने बहुत कोशिश की उसके पति ने भी बहुत कोशिश की लेकिन वह जमता ही नहीं । आखिर उसने दुकानदार से पूछा कि सुनो, पांच साल के बच्चे के लिए हम यह खिलौने खरीद रहे हैं; न मैं इसको जमा पाती हूं न मेरे पति जमा पाते हैं। मेरे पति गणित के प्रोफेसर हैं। अब और कौन इसको जमा पाएगा? मेरा पांच साल का बच्चा इसको कैसे जमाएगा?
उस दुकानदार ने कहा, सुनें, परेशान न हों। यह खिलौना जमाने के लिए बनाया ही नहीं गया। यह तो बच्चे के लिए एक शिक्षण है कि दुनिया भी ऐसी ही है, कितना ही जमाओ, यह जमती नहीं । यह तो बच्चा अभी से सीख ले जीवन का एक सत्य । इसको जमाने की कोशिश करेगा बच्चा, हजार कोशिश करेगा, मगर यह जमाने के लिए बनाया ही नहीं गया, यह जम सकता ही नहीं। इसमें तुम चूकते ही जाओगे। इसमें हार निश्चित है।
संसार एक प्रशिक्षण है। यह जमने को है नहीं। यह कभी जमा नहीं। यह सिकंदर से नहीं जमा । यह नेपोलियन से नहीं जमा । यह तुमसे भी जमने वाला नहीं है। यह किसी से कभी नहीं जमा । अगर यह जम ही जाता तो बुद्ध, महावीर छोड़ कर न हट जाते, उन्होंने जमा लिया होता। बुद्ध - महावीरों से नहीं जमा, तुमसे नहीं जमेगा। यह जमने को है ही नहीं। यह बनाया ही इस ढंग से गया है कि इसमें हार सुनिश्चित है, विषाद निश्चित है।
यह जागने को बनाया गया है कि तुम देख-देख कर, हार-हार कर जागो। एक दिन, जिस दिन तुम जाग जाओगे, तुम्हें यह समझ आ जाएगी कि यह जमता ही नहीं- नहीं कि मेरे उपाय में कोई कमी है, नहीं कि मैंने मेहनत कम की; नहीं कि मैं बुद्धिमान पूरा न था, नहीं कि मैं थोड़ा कम दौड़ा, अगर थोड़ा और दौड़ता तो पहुंच जाता । जिस दिन तुम समझोगे यह जमने को बना ही नहीं उस दिन विषाद मिट जाएगा । उस दिन सब भीतर की पराजय हार, सब खो जाएगी। उस दिन तुम खिलखिला कर हसोगे। तुम कहोगे, यह भी खूब मजाक रही!
इस मजाक को जान कर ही हिंदुओं ने जगत को लीला कहा । खूब खेल रहा! इस संसार से तुम जब तक अपेक्षा रखे हो, तब तक बेचैनी है।